प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार दोहराते हैं कि भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ है। अपनी हालिया अमेरिका यात्रा में भी उन्होंने अमेरिका के ‘सबसे बड़े लोकतंत्र’ होने और भारत के ‘लोकतंत्र की जननी’ होने को मज़बूत रिश्ते की बुनियाद बताया। लेकिन संपुट की तरह दोहराये जाने वाला इस वाक्य का कोई अर्थ भी है या फिर यह महज़ एक ढाल है जिसके नीचे जर्जर होते जा रहे भारतीय लोकतंत्र की असली तस्वीर छिपायी जा रही है?


संयुक्त राज्य अमेरिका को जब ‘सबसे बड़ा लोकतंत्र’ कहा जाता है तो ये सवाल हमेशा उठता है कि उसने दुनिया भर मे लोकतंत्र का नाश करने वाले शासकों के साथ गलबहियाँ की। यह आरोप नहीं, एक सच्चाई है और पिछले दिनों पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीएनएन को दिये गये अपने चर्चित इंटरव्यू में इसे स्वीकार भी किया था। लेकिन अमेरिकी ‘राज्य’ ने अपनी सीमा के भीतर आमतौर पर नागरिकों को लोकंतांत्रिक अधिकार छीने जाने का अहसास नहीं होने दिया। वहाँ लोकतंत्र पर निगरानी रखने वाली तमाम संस्थाएँ न सिर्फ़ मज़बूत बनी हुई हैं बल्कि व्हाइट हाउस कवर करने वाले पत्रकारों को यह अधिकार हासिल है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति की आँख में आँख डालकर सवाल करें। अमेरिकी राष्ट्रपति इस दल के जिन पत्रकारों को बिलकुल भी पसंद नहीं करता, उनका भी व्हाइट हाउस में प्रवेश प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। ऐसी हर कोशिश को अमेरिकी लोकतंत्र पर हमले की तरह देखा जाता है। उसका प्रतिवाद होता है।