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राहुल गांधी के ख़िलाफ़ शालीनता की सीमाएं लांघते बीजेपी नेता! 

बीजेपी और उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने अपने प्रचार तंत्र और कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया के जरिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लंबे समय से 'पप्पू’ के तौर पर प्रचारित कर रखा है। इस प्रचार की निरंतरता को बनाए रखने के लिए बीजेपी की ओर से काफी बड़ी धनराशि भी खर्च की जाती है। इस सिलसिले में तमाम केंद्रीय मंत्रियों और बीजेपी प्रवक्ताओं का अक्सर यह भी कहना रहता है कि वे राहुल गांधी की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेते हैं। 

लेकिन होता यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के ख़िलाफ़ राहुल गांधी जब भी कुछ बोलते हैं, आरोप लगाते हैं या सरकार को कुछ सुझाव देते हैं तो सरकार के कई मंत्री और पार्टी प्रवक्ता उनका जवाब देने के लिए मोर्चा संभाल लेते हैं। 

यही नहीं, तमाम टीवी चैनलों पर उनके एंकर और 'एक खास किस्म के राजनीतिक विश्लेषक’ भी राहुल की खिल्ली उड़ाने में जुट जाते हैं।

ख़ास ख़बरें

राहुल गांधी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता हैं। इस नाते उनका काम है सरकार का विरोध करना या उसके कामकाज और फ़ैसलों पर सवाल उठाना, सो वे यह काम करते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि वे जितना सरकार का विरोध करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा सरकार के मंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता उनका विरोध करते हैं। 

चौतरफ़ा हमला 

जब उनका विरोध करने के लिए तर्कसंगत बातें नहीं होती हैं तो कुतर्कों या अजीबोगरीब कुतर्कों से भी उनका विरोध किया जाता है। इस सिलसिले में कभी-कभी तो केंद्र सरकार के मंत्री, बीजेपी प्रवक्ता और टीवी चैनलों की डिबेट में एंकर तथा दूसरे लोग राहुल गांधी को निशाना बना कर इस तरह से सवाल दागने लगते हैं मानो राहुल गांधी ही सरकार चला रहे हों और जो भी गड़बड़ी हो रही है, उसके लिए वे ही जवाबदार हैं। 

हाल ही में राहुल गांधी अपने समर्थकों के साथ केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए ट्रैक्टर चला कर संसद भवन पहुंचे। ऐसा करके उन्होंने कोई नया काम नहीं किया। यह विरोध का एक तरीका होता है।

करीब पांच दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी भी महंगाई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करते हुए बैलगाड़ी से संसद भवन तक गए थे। ट्रैक्टर पर सवार राहुल गांधी को तो संसद भवन के बाहर ही रोक कर उनका ट्रैक्टर जब्त कर लिया गया, जबकि वाजपेयी ने तो बैलगाड़ी पर बैठकर संसद भवन के परिसर में भी प्रवेश किया था और वहां बैलगाड़ी पर ही खड़े होकर सरकार के ख़िलाफ़ भाषण भी दिया था। 

उस समय न तो पुलिस ने बैलगाड़ी पर सवार वाजपेयी को संसद परिसर में प्रवेश करने से रोका था और न ही बैलगाड़ी को जब्त किया था। सरकार के किसी मंत्री या कांग्रेस के नेता ने वाजपेयी के इस विरोध प्रदर्शन को संसदीय गरिमा के ख़िलाफ़ या संसद का अपमान भी नहीं बताया था।

BJP leaders attack on rahul gandhi - Satya Hindi

बहरहाल, राहुल गांधी के ट्रैक्टर चलाते हुए संसद पहुंचने को नौटंकी करार देते हुए कहा गया कि उनका यह आचरण संसदीय गरिमा के ख़िलाफ़ और अराजक है। इससे भी ज्यादा अजीबोगरीब दलील केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दी। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जितने लोगों को ट्रैक्टर पर बैठा कर लाए, वह ट्रैफिक नियमों के ख़िलाफ़ था। 

यह बात अगर ट्रैफिक पुलिस का कोई अधिकारी कहे तो समझ में आता है लेकिन जिन कृषि मंत्री को राहुल के उठाए मुद्दों का जवाब देना था, उन्होंने उन मुद्दों जवाब न देकर ट्रैफिक नियमों का ज्ञान दिया। 

मीनाक्षी लेखी को मिला जवाब 

इस वाकये से दो-चार दिन पहले विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी को निशाना बनाते हुए कहा कि अगर महामारी के दौरान राहुल गांधी ने अपनी भूमिका ठीक तरीके से निभाई होती तो लोगों को इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती। इस टिप्पणी को लेकर मीनाक्षी लेखी का सोशल मीडिया में काफी मजाक उड़ाया गया। लोगों ने सवाल किया कि राहुल गांधी क्या प्रधानमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री हैं, जो उन्होंने अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाई? 

यह भी पूछा गया कि अगर विपक्ष के नेता के नाते उन्होंने महामारी के दौरान किसी सरकारी काम में बाधा डाली तो आपदा प्रबंधन कानून के तहत उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? 

मीनाक्षी लेखी हाल ही में केंद्रीय मंत्री बनने से पहले तक बीजेपी की प्रवक्ता थीं। प्रवक्ता के तौर पर उनके बयान आक्रामक तो होते थे लेकिन वे मुद्दे पर बोलती थीं और सधा हुआ बोलती थीं, लेकिन मंत्री बनने के बाद उनका अंदाज बिल्कुल ही बदला हुआ दिखाई दे रहा है।

किसानों को मवाली कहा 

इसी बदले हुए अंदाज में उन्होंने आंदोलन कर रहे किसानों को भी मवाली तक कह डाला, जिसका चौतरफा विरोध होने पर उन्हें शर्मिंदा होते हुए खेद जताना पड़ा। उनकी असंतुलित और विवादास्पद बयानबाज़ी की वजह शायद यह हो सकती है कि बोलने से पहले उन्होंने तैयारी नहीं की हो या फिर मंत्री बनने की अनिवार्य योग्यता का परिचय देने के लिए उन्होंने इस तरह के बयान दिए हों। 

BJP leaders attack on rahul gandhi - Satya Hindi

निर्मला सीतारमण का बयान

राहुल गांधी के बारे में जैसा बयान मीनाक्षी लेखी ने दिया, ठीक उसी तरह का बयान कोरोना की पहली लहर के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी दिया था। उस समय लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों के एक परिवार से राहुल गांधी सड़क पर मिले थे, तब निर्मला सीतारमण ने कहा था कि राहुल ने इस तरह की नौटंकी कर मजदूरों का समय खराब किया।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाए गए रविशंकर प्रसाद तो राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अक्सर ही अहंकारी लहजे में बदजुबानी करते रहते हैं। अप्रैल महीने की 9 तारीख को राहुल गांधी ने कहा था कि सरकार को दुनिया भर में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई वैक्सीन को भारत में भी मंजूरी देनी चाहिए। 
राहुल का यह बयान आते ही रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेन्स करके कहा था कि पार्ट टाइम नेता के तौर पर फेल होने के बाद राहुल गांधी अब फुल टाइम लॉबिस्ट यानी दलाल हो गए हैं। उनके सुर में सुर मिलाते हुए स्मृति ईरानी ने भी राहुल को 'फेल्ड पोलिटिशियन एंड फुल टाइम लॉबिस्ट’ कहा था।

शर्म नहीं आई 

लेकिन महज तीन दिन बाद ही यानी 13 अप्रैल को भारत सरकार ने अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूर सभी वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। लेकिन अपनी सरकार के इस फ़ैसले के बाद राहुल गांधी को विदेशी फार्मा कंपनियों का लॉबिस्ट कहने वाले मुंहबली केंद्रीय मंत्रियों को अपने बयान पर जरा भी शर्म नहीं आई।

रविशंकर प्रसाद ने तो यह तक कहा था कि राहुल ने पहले तो लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनियों के लिए लॉबिंग करते हुए राफ़ेल विमानों के भारतीय सौदे को पटरी से उतारने की कोशिश की और अब वे वैक्सीन बनाने वाली विदेशी फार्मा कंपनियों के लिए दलाली कर रहे हैं। 

BJP leaders attack on rahul gandhi - Satya Hindi

शुरू हुई राफ़ेल सौदे की जांच 

हालांकि रविशंकर प्रसाद ऐसा कहते हुए यह भूल गए थे कि राफ़ेल सौदे को लेकर फ्रांस के न्यूज पोर्टल मीडियापार्ट ने अपने ही देश की एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से खुलासा किया है कि इस सौदे में दलाली, बिचौलिया और याराना पूंजीवाद, सब कुछ है जिसे फ्रांस और भारत की सरकारें छुपा रही हैं। फ्रांस में सरकार बदलने के बाद अब तो उस सौदे की न्यायिक जांच भी शुरू हो चुकी है।

फिर मानी राहुल की बात

अप्रैल महीने में ही कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए राहुल गांधी ने जब सीबीएसई की परीक्षाएं स्थगित कर देने का सुझाव दिया तो बीजेपी के तमाम प्रवक्ता, नेता और टीवी चैनलों के एंकर तक इस सुझाव को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कह रहे थे कि बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। 

लेकिन राहुल के बयान के महज एक सप्ताह बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उस समय के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ बैठक की और 10वीं की परीक्षा रद्द करने तथा 12वीं की परीक्षा टालने का फ़ैसला किया। कुछ ही दिनों बाद 12वीं की परीक्षा भी रद्द कर दी गई। प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी बच्चों का स्वास्थ्य है। 

विचार से और ख़बरें

राहुल के ख़िलाफ़ बदजुबानी और अजीबोगरीब बयानों की ये तो चंद बानगियां हैं। बाकी संबित पात्रा, गौरव भाटिया, प्रेम शुक्ला जैसे बीजेपी प्रवक्ता तो नियमित रूप से टीवी चैनलों पर बैठ कर राहुल गांधी के लिए जिस तरह के अभद्र और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उससे लगता ही नहीं कि वे किसी राजनीतिक दल के और वह भी सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता हैं। 

चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी विपक्षी नेताओं और अपने आलोचकों के लिए अभद्र और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते हैं, लिहाजा उनके मंत्रियों और उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं से भी सभ्य और शालीन भाषा के इस्तेमाल की उम्मीद करना बेमानी है।

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अनिल जैन
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