“आज की राजनीतिक उथल पुथल के बीच राहुल गाँधी जो कर रहा है वो बहुत ही ईमानदार प्रयास है। यह भी कह सकता हूँ कि कोई घपला नहीं किया है उसने। वैचारिक घपला भी नहीं किया है। आज नहीं तो कल वो हो सकता है महात्मा गाँधी, नेल्सन मंडेला की परम्परा में आए।” -काशीनाथ सिंह ( साहित्य अकादमी और भारत-भारती पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार, नवभारत टाइम्स में छपे हालिया साक्षात्कार में।)
ट्रंप पर चली गोली का रुख़ राहुल की ओर करने के पीछे बीजेपी की हिंसक-हीनभावना!
- विचार
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- 17 Jul, 2024

कांग्रेस ने 139 साल के इतिहास में हिंसा को कभी अपनी नीति नहीं बनाया। बल्कि महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अहिंसक प्रतिवाद का जैसा सिद्धांत गढ़ा गया उसने भारत ही नहीं, ग्लोब के तमाम हिस्सों को अधिक रक्तरंजित होने से बचाया है। राहुल गाँधी महात्मा गाँधी की दिखाई उसी राह के राही हैं...
“ भारत जोड़ो यात्रा ने न केवल राहुल को राष्ट्रनेता के रूप में स्थापित किया बल्कि देश के राजनीतिक परिदृश्य को भी मजबूत किया। …युवा कांग्रेस नेता ने राजनीति में काफी परेशानी का सामना किया, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में उन्होंने असाधारण प्रदर्शन किया है। मुझे इस बात की खुशी है कि राहुल चुनाव केवल अपनी गुणवत्ता और क्षमता पर नहीं लड़ते हैं, बल्कि इस पर ध्यान देते हैं कि देश क्या चाहता है!” - अमर्त्य सेन (नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री पीटीआई को दिये साक्षात्कार में।)
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी के बारे में ये दो बयान बताते हैं कि दुनिया उन्हें किन नज़रों से देख रही है। सत्ता-पोषित नफ़रत से बने हिंसक माहौल में राहुल गाँधी ने जिस तरह से प्रेम और सद्भावना को राजनीतिक विमर्श की धुरी बनाया है, वह उन्हें युगांतकारी नेता की धज दे रहा है। दस साल पहले नरेंद्र मोदी के बनारस से चुनाव लड़ने का स्वागत करने वाले काशीवासी साहित्यकार काशीनाथ सिंह अगर राहुल गाँधी को महात्मा गाँधी और नेल्सन मंडेला की परंपरा से जोड़ रहे हैं और अमर्त्य सेन उनके प्रदर्शन को ‘असाधारण और देश की आकांक्षा से जुड़ा’ बता रहे हैं तो ये प्रतिसाद की आशा में किसी राजनेता को ख़ुश करने के लिए दिये गये बयान नहीं हैं। इसके पीछे राहुल गाँधी की अहर्निश मेहनत और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संकल्पों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को चिन्हित करना है जिसने इन विद्वान लेखकों के दिल को छुआ है।