loader

‘मोहन’ के देश में ‘आसिफ़’ के साथ बेरहमी!

पैंसठ सालों के बाद आज भी ‘मोहन’ पानी की तलाश में इधर से उधर भटक रहा है। फ़र्क़ बस यह हुआ है कि बदली हुई परिस्थितियों में स्क्रिप्ट की माँग के चलते ‘मोहन’ अब ‘आसिफ़’ हो गया है। डासना के मंदिर में पानी की तलाश में पहुँचे मुसलिम बच्चे पर भी वही आरोप लगाया गया है कि वह चोरी के इरादे से घुसा था।
श्रवण गर्ग

तीस जनवरी 1948 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या अगर एक कट्टर हिंदू नाथूराम गोडसे के बजाय किसी मुसलिम सिरफिरे ने कर दी होती तो आज़ाद भारत की तसवीर आज किस तरह की होती! क्या वह वैसी ही बदहवास होती जैसी कि आज दिखाई पड़ रही है अथवा कुछ भिन्न होती?

देश की राजधानी दिल्ली की नाक के नीचे बसे ग़ाज़ियाबाद ज़िले के एक गाँव डासना में स्थित देवी के मंदिर में पानी की प्यास बुझाने के लिए प्रवेश करने वाले एक मासूम तरुण की ज़बरदस्त तरीक़े से पिटाई की जाती है; उसे बेरहमी के साथ मारने वाला अपने क्रूर कृत्य का वीडियो बनवाता है और उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी कर देता है। बच्चे का क़ुसूर सिर्फ़ इतना होता है कि वह उक्त मंदिर पर लगे बोर्ड को नहीं पढ़ पाता है कि वह हिंदुओं का पवित्र स्थल है। वहाँ मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है। शायद यह क़ुसूर भी हो कि बच्चा पास के ही गाँव में रहने वाले एक ग़रीब मुसलिम का बेटा है।

ताज़ा ख़बरें

इस शर्मनाक घटना पर देश की संसद में कोई सवाल नहीं पूछा जाता। कांग्रेस पार्टी की तरफ़ से भी नहीं! न ही सरकार के किसी मंत्री को महात्मा गांधी के ‘वैष्णव जन‘ का हवाला देते हुए घटना पर दुःख प्रकट करने की ज़रूरत पड़ती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गर्व के साथ कहते हैं कि ‘सेकुलरिज़्म’ शब्द सबसे बड़ा झूठ और भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। जो भी इसकी वकालत करते हैं उन्हें राष्ट्र से माफ़ी माँगनी चाहिए।

इसी दौरान, सुदूर इंग्लैंड की प्रसिद्ध ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में एक भारतीय छात्रा के साथ हुई कथित जातिवादी घटना पर राज्यसभा में सवाल उठ गए। यूनिवर्सिटी की छात्रसंघ का अध्यक्ष बन जाने के बाद छात्रा को अपनी कुछ पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट्स की आलोचनाओं का शिकार होकर पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 

राज्यसभा में सभी पक्षों के सांसदों ने ऑक्सफ़ोर्ड में भारतीय छात्रा के साथ हुई कथित जातिवादी घटना की आलोचना की। 

विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि महात्मा गांधी का देश होने के नाते भारत जातिवाद को लेकर कहीं पर भी होने वाली घटना की अनदेखी नहीं कर सकता। ग़ाज़ियाबाद के डासना में हुई जातिवाद की घटना गांधी के देश की ज़मीन से बाहर की मान ली जाती है।

दो महीने पहले (जनवरी में) अमेरिका के नॉर्थ केरोलिना राज्य के डेविस शहर में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गांधी की एक बड़ी कांस्य प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। भारत की ओर से माँग उठाई गई कि पूरे मामले की गहन रूप से जाँच की जाए और इस घिनौने कृत्य के दोषियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाए। पिछले साल जून में जब राजधानी वॉशिंगटन में भी इसी तरह की घटना हुई थी तब भी इसी तरह से भारत के द्वारा विरोध व्यक्त किया गया था। जनवरी में ही हमारे यहाँ ग्वालियर में एक हिंदूवादी संगठन के द्वारा गोडसे ज्ञानशाला की सार्वजनिक रूप से शुरुआत की गई। कहा गया कि इसमें बच्चों को गोडसे का जीवन चरित्र पढ़ाया जाएगा तथा देश के विभाजन के ‘सच’ से उन्हें अवगत कराया जाएगा। कहीं कोई हल्ला नहीं मचा।

asif beaten for entry into ghaziabad dasna temple as hate against muslims mounts - Satya Hindi

दो साल पहले गांधी की पुण्य तिथि पर अलीगढ़ में गांधी के पुतले पर गोलियाँ चलाने, उसे जलाने और फिर गोडसे की तसवीर पर माल्यार्पण कर मिठाई बाँटने की घटना का वीडियो वायरल हो चुका है। हमारे लिए दुनिया में प्रचारित किए जाने वाले गांधी और देश में बर्ताव किए जाने वाले राष्ट्रपिता के चेहरे अलग-अलग हैं! देश के भीतर गांधी की बार-बार हत्या की जा रही है और बाहर उन्हें बचाया जा रहा है। कोई बताना नहीं चाहता कि गांधी को जब एक ही बार में अच्छे से मारा जा चुका है तो अब बार-बार उनकी हत्या क्यों की जा रही है? और जिसे गांधी के नाम पर बचाया जा रहा है वह हक़ीक़त में कौन है?

asif beaten for entry into ghaziabad dasna temple as hate against muslims mounts - Satya Hindi

साल 1956 यानी अभी से कोई साढ़े छह दशक पहले देश के सिनेमाघरों में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी जिसका नाम था ‘जागते रहो’। अगस्त 1947 के सिर्फ़ नौ साल बाद ही प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म ने उन सपनों की धज्जियाँ उड़ा दी थीं जो आज़ादी की प्राप्ति के साथ हमारे नेताओं के द्वारा जनता की आँखों में काजल की तरह भरे गए थे।

ख़ास ख़बरें

‘जागते रहो’ का नायक ‘मोहन’ गाँव से कोलकाता महानगर में नौकरी की तलाश में आता है। सड़कों पर भटकते-भटकते उसका गला सूखने लगता है और वह कहीं पानी की तलाश करता है। तभी उसकी नज़र एक इमारत के अहाते में लगे नल से टपकती हुई पानी की बूँदों पर पड़ जाती है। मोहन जैसे ही पानी पीने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता है एक कुत्ता अचानक से भौंकने लगता है और उसी के साथ वहाँ का चौकीदार भी ‘चोर-चोर’ का शोर मचा देता है। पुलिस की दहशत से मोहन इमारत के एक फ़्लैट से दूसरे फ़्लैट में भागना शुरू कर देता है। मोहन का इमारत में एक जगह से दूसरी जगह भागते रहने का सिलसिला पूरी रात चलता रहता है और इस दौरान उसका सामना हर फ़्लैट में एक से बढ़कर एक चोर और बेईमान से होता है।

पैंसठ सालों के बाद आज भी ‘मोहन’ पानी की तलाश में इधर से उधर भटक रहा है। फ़र्क़ बस यह हुआ है कि बदली हुई परिस्थितियों में स्क्रिप्ट की माँग के चलते ‘मोहन’ अब ‘आसिफ़’ हो गया है।
डासना के मंदिर में पानी की तलाश में पहुँचे मुसलिम बच्चे पर भी वही आरोप लगाया गया है कि वह चोरी के इरादे से घुसा था। ‘चोर-चोर’ की आवाज़ें लगाने वाले भी समाज में वैसे ही मौजूद हैं बस उनकी शक्लें और उन्हें बचाने वाले बदल गए हैं। ’जागते रहो’ में तो मोहन लोगों के हाथों पिटने से बच गया था, पर आसिफ़ नहीं बच पाया। और अंत में यह कि असली नाम तो गांधी का भी मोहन ही था। देश मोहन को नहीं बचा पाया, ‘आसिफ़’ को कैसे बचाया जा सकेगा?
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें