जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय करने की इच्छा जताते हुए राज्य के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार को एक पत्र भेजा था जिसका लुब्बेलुबाब यह था कि सरकार अपनी फ़ौजें भेजकर जम्मू-कश्मीर की रियासत को पाकिस्तान के क़ब्ज़े में जाने से बचाए। यह पत्र किन परिस्थितियों में लिखा गया था और विलय पत्र में कश्मीर की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने के लिए क्या-क्या शर्तें थीं, यह हम पिछली किस्त में पढ़ चुके हैं। आज हम जानेंगे कि इस विलय पत्र को स्वीकार करते हुए भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबैटन ने ऐसा क्या और क्यों कह दिया जिसके लिए बीजेपी और संघ के नेता-कार्यकर्ता आज तक तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहराते रहते हैं।
अनुच्छेद 370: जूनागढ़ में जनमत की जय, कश्मीर में जनमत से भय
- विचार
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- नीरेंद्र नागर
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- 1 Jul, 2019

अनुच्छेद 370 पर विशेष : कई लोग मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, उसके बाद राज्य में जनमतसंग्रह का मुद्दा उठाने की ज़रूरत नहीं थी। वे नहीं जानते कि आज़ादी के बाद जूनागढ़ और हैदराबाद के शासक पाकिस्तान में मिलने के इच्छुक थे और भारत सरकार उनका यह कहकर विरोध कर रही थी कि वहाँ की हिंदू-बहुल जनता भारत में मिलना चाहती है। ऐसे में क्या सरकार यह दोहरी नीति अपना सकती थी कि जूनागढ़ और हैदराबाद में तो जनता की इच्छा सर्वोपरि है लेकिन जम्मू-कश्मीर में राजा की इच्छा? कश्मीर सीरीज़ पर पहली कड़ी में विलय पत्र पर चर्चा के बाद आज पेश है दूसरी कड़ी।