नेहरू लोकतांत्रिक विचारों के नेता थे और उन्होंने जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह का प्रस्ताव इसलिए दिया ताकि देश और दुनिया के सामने यह संदेश नहीं जाए कि भारत ने कश्मीर या किसी भी रियासत को वहाँ की प्रजा की इच्छा के विरुद्ध जाकर भारत में शामिल किया है। इसीलिए वे हर विवादित राज्य में रायशुमारी चाहते थे और देश के गृहमंत्री पटेल भी उनसे सहमत थे। जूनागढ़ में भी इसीलिए जनमत संग्रह करवाया गया, हालाँकि वहाँ की जनता हिंदू-बहुल थी। मुसलिम-बहुल जम्मू-कश्मीर में तो यह और ज़रूरी था। लेकिन जब वहाँ यह संभव होता नहीं दिखा तो उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया जो जनमत संग्रह न होते हुए भी एक तरह से जनता की राय का ही पर्याय माना जा सकता था। वह रास्ता यह था कि राज्य में चुनाव करवाकर जन प्रतिनिधि चुने जाएँ और वे यदि राज्य के भारत में विलय पर मुहर लगा दें तो मान लिया जाए कि जम्मू-कश्मीर की जनता भारत के साथ विलय की पक्षधर है।
अनुच्छेद 370: शेख अब्दुल्ला को हटाना था, मुखर्जी की मौत बहाना था
- विचार
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- नीरेंद्र नागर
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- 3 Jul, 2019

अनुच्छेद 370 पर विशेष : संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 और कश्मीर मुद्दे को एक बार फिर से छेड़ दिया है। बीजेपी इस मुद्दे को क्यों हवा देती रही है? क्यों शेख अब्दुल्ला की सरकार को हटाया गया था? ऐसा लगता है कि नेहरू सरकार लंबे समय से शेख अब्दुल्ला को रास्ते से हटाने का मौक़ा खोज रही थी। क्या शेख को हर हाल में जाना था और मुखर्जी की मौत बस एक बहाना था? कश्मीर सीरीज़ पर पहली कड़ी और दूसरी कड़ी में अनुच्छेद 370 और विलय पत्र पर चर्चा के बाद आज पेश है तीसरी कड़ी।
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