नेहरू लोकतांत्रिक विचारों के नेता थे और उन्होंने जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह का प्रस्ताव इसलिए दिया ताकि देश और दुनिया के सामने यह संदेश नहीं जाए कि भारत ने कश्मीर या किसी भी रियासत को वहाँ की प्रजा की इच्छा के विरुद्ध जाकर भारत में शामिल किया है। इसीलिए वे हर विवादित राज्य में रायशुमारी चाहते थे और देश के गृहमंत्री पटेल भी उनसे सहमत थे। जूनागढ़ में भी इसीलिए जनमत संग्रह करवाया गया, हालाँकि वहाँ की जनता हिंदू-बहुल थी। मुसलिम-बहुल जम्मू-कश्मीर में तो यह और ज़रूरी था। लेकिन जब वहाँ यह संभव होता नहीं दिखा तो उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया जो जनमत संग्रह न होते हुए भी एक तरह से जनता की राय का ही पर्याय माना जा सकता था। वह रास्ता यह था कि राज्य में चुनाव करवाकर जन प्रतिनिधि चुने जाएँ और वे यदि राज्य के भारत में विलय पर मुहर लगा दें तो मान लिया जाए कि जम्मू-कश्मीर की जनता भारत के साथ विलय की पक्षधर है।