जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय को पक्का करने के लिए वहाँ की मुसलिम-बहुल जनता से राय लेने का जो वादा नेहरू सरकार ने विलय पत्र को स्वीकार करते हुए किया था, उसे वह कभी भी नहीं पूरा कर पाए क्योंकि भारत और पाकिस्तान सरकार में राज्य से दोनों पक्षों की सेनाओं को हटाने और साझा प्रशासनिक नियंत्रण में रायशुमारी कराने पर रज़ामंदी नहीं हो पाई। अगर 1947-48 में जनमत संग्रह हो जाता तो नतीजा भारत में पक्ष में आने की पूरी संभावना थी क्योंकि शेख़ अब्दुल्ला जो कश्मीर के सबसे लोकप्रिय नेता थे, वह पाकिस्तान के मुक़ाबले भारत को बेहतर साथी समझते थे।