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नवीन पटनायक के साथ पांडियन

ओडिशाः पांडियन मैदान छोड़कर क्यों भागे, नवीन पटनायक अब क्या करेंगे?

जो शख्स ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजेडी) को सत्ता में छठीं बार लाने चला था, जो अपने मुख्यमंत्री का खासमखास था, वही शख्स इम्तिहान आने पर भाग खड़ा हुआ। बात आईएएस वीके पांडियन की हो रही है जो दो दिन पहले ओडिशा की राजनीति को नमस्ते बोलकर और बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक को अकेला छोड़कर चले गए। जिसने सुना दंग रह गया, क्यों कहां तो वो नवीन पटनायक को वापस सत्ता में लाने चले थे और खुद विदा हो गए। 

ओडिशा विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बीजेडी को धूल चटा दी। विधानसभा चुनावों में 147 सीटों वाली बीजेडी इस बार 51 पर सिमट गई। लोकसभा की एक सीट जीत सकी। लगभग सात महीने से पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन जो बीजेडी को संभाल रहे थे, बाजी हारने पर बीजेपी कार्यकर्ताओं से माफी मांगकर राजनीति छोड़ गए।
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पांडियन का विदाई बयान महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा- “मुझे खेद है कि मेरी वजह से जो नैरेटिव बना, उसकी बीजेडी की हार में कोई भूमिका थी। पांडियन ने बीते रविवार को अपने इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में यह बात कही। पांडियन ने कहा कि मैं सभी कार्यकर्ताओं सहित पूरे बीजू परिवार से माफी मांगता हूं। बता दें कि भाजपा ने अपने प्रचार अभियान में नवीन पटनायक सरकार के काम पर हमला करने की बजाय तमिलनाडु मूल के आईएएस अधिकारी वीके पांडियन और पार्टी पर उनके कथित नियंत्रण को निशाना बनाया। भाजपा ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार (खजाना) की "लापता" चाबियों से लेकर पटनायक की "बिगड़ती सेहत" के पीछे कथित साजिश तक का मामला उठाया। वही नवीन पटनायक जो पिछले 10 वर्षों से मोदी सरकार की हर मुश्किल में मदद कर रहे थे। भाजपा ने ओडिशा की सत्ता पर कब्जा करने के लिए बीजेडी और पटनायक को धो डाला।

अफसरों के सहारे सरकार चलाना नवीन पटनायक की आदत बन गई थी। नवीन अपने पिता बीजू पटनायक के निधन के समय 51 साल के थे। नवीन पटनायक ने सत्ता संभाली तो 2000 से 2012 तक, पूर्व आईएएस अधिकारी प्यारी मोहन महापात्र बीजेडी के दूसरे नंबर के नेता बन गए। महापात्र ही सभी प्रमुख निर्णय लेते थे। उनकी सलाह पर 2004 में नवीन पटनायक ने विधानसभा भंग कर दी और लोकसभा साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। एकसाथ दोनों चुनावों में जाने का फैसला बीजेडी के लिए बाद के वर्षों में फायदेमंद साबित हुआ।

2012 में महापात्र और पटनायक में रिश्ते बिगड़ गए। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जब लंदन में थे तो वहां उन्हें पता चला कि महापात्र उनकी सरकार को गिराने की साजिश कर रहे हैं। नवीन फौरन भुवनेश्वर लौट आए। उन्होंने महापात्र को बर्खास्त कर दिया। उसके बाद आईएएस पांडियन का ओडिशा में उदय हुआ। 2014 में खबर आई कि वो मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में सबसे खास अफसरों में हैं।

पटनायक को उनके करीबी सहयोगियों बैजयंत "जय" पांडा, दामोदर राउत, प्रदीप पाणिगढ़ी ने समझाया और पांडियन के बढ़ते प्रभाव पर सवाल उठाये। लेकिन पटनायक ने पांडियन का बचाव किया। धीरे-धीरे ये सारे बड़े नेता नवीन पटनायक से दूर हो गए। कोविड-19 के दौरान पटनायक ने खुद को अपने घर तक सीमित कर लिया, सार्वजनिक उपस्थिति कम कर दी। पांडियन ने उनके दूत के रूप में राज्यभर का दौरा किया और पार्टी पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया। बीजेडी के सर्वेसर्वा अब पांडियन थे।
2019 में पांडियन सभी की नजरों में ज्यादा आए। बीजेडी को लगातार पांचवीं बार सत्ता मिली। उन्हें 5T (टीम वर्क, प्रौद्योगिकी, पारदर्शिता, परिवर्तन के लिए समय) पहल का सचिव नियुक्त किया गया। बीजेडी ने जाजपुर विधायक प्रणब प्रकाश दास उर्फ बॉबी को 2020 में संगठनात्मक सचिव नियुक्त किया, जिन्हें पार्टी में नंबर दो माना जाता था। पांडियन उनके माध्यम से सभी निर्णय ले रहे थे।

अभी यह साफ नहीं है कि पांडियन आगे क्या करेंगे। पूर्व आईएएस अधिकारी ने वीडियो बयान में कहा कि वह हमेशा "ओडिशा को अपने दिल में रखेंगे" और अपने "गुरु नवीन बाबू को अपनी सांसों में रखेंगे"। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि हाल ही में एक बैठक में मांग रखी गई थी कि पार्टी प्रमुख और पार्टी नेताओं के बीच "अदृश्य बाधा" को हटाया जाए।
बीजेडी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी जब भी चुनाव होंगे, सत्ता में वापसी करेगी। लेकिन उसके लिए नवीन पटनायक को कदम उठाने होंगे। अब यह भी डर है कि पांडियन की वजह से नवीन पटनायक और कार्यकर्ताओं में जो दूरी बनी थी, उसका फायदा कोई नेता या उनका समूह न उठाकर पार्टी पर कब्जा कर ले। फिलहाल संकेत यही है कि पटनायक फिर से पार्टी की सीधी कमान संभाल रहे हैं। समीक्षा बैठक के दौरान, पटनायक ने बीजेडी की चुनावी हार के कारणों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। 
बात यही है कि क्या नवीन पटनायक सत्ता के बिना पांच साल गुजार पाएंगे। क्योंकि उन्हें सत्ता की लत लग चुकी थी। विपक्ष में बैठना एक बड़ी चुनौती है और पटनायक जो कंटाबांजी और हिंजिली दोनों सीटों पर हार गए किस खास को विपक्ष का नेता नियुक्त करेंगे। हालांकि वो चाहें तो नेतृत्व कर सकते हैं और आने वाले वर्षों में पार्टी को खड़ा कर सकते हैं।
पटनायक ने विपक्ष की राजनीति कभी की ही नहीं। न ही उन्हें धरना, प्रदर्शन करने-कराने का अनुभव है। पटनायक के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के विधायकों को अपने साथ बरकरार रखना है। भाजपा के खुर्दा विधायक प्रशांत कुमार जगदेव, जो पहले बीजेडी में थे, ने कहा कि 25 बीजेडी विधायक जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे।

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दिक्कत ये है कि नवीन पटनायक ने अपना उत्तराधिकारी तय नहीं किया है। बढ़ती उम्र और सेहत उनके लिए एक समस्या है। पांडियन पार्टी छोड़कर चले गए हैं, अगर वे होते तो शायद वही उत्तराधिकारी कहलाते। पांडियन के जाने के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि नवीन के बाद कौन। इससे पहले, जब भी उनके सामने उत्तराधिकारी का सवाल आया, तो पटनायक ने कहा था कि ओडिशा के लोग उनके उत्तराधिकारी को चुनेंगे। लेकिन ओडिशा के लोग पार्टियों को सत्ता में लाते हैं, उनके उत्तराधिकारियों को नहीं।

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क़मर वहीद नक़वी
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