बचपन में जिन दो लेखकों ने हमारे भीतर व्यंग्य की समझ पैदा की उनमें से एक थे केपी सक्सेना और दूसरे थे उर्मिल कुमार थपलियाल। उर्मिल जी की सप्ताह की नौटंकी पढ़ते हुए ही हम बड़े हुए थे। बहुत सारे मूल्यों और विडंबनाओं को हमें नट और नटी ने जिस खूबी से समझाया वैसा और किसी ने भी नहीं।