बचपन में जिन दो लेखकों ने हमारे भीतर व्यंग्य की समझ पैदा की उनमें से एक थे केपी सक्सेना और दूसरे थे उर्मिल कुमार थपलियाल। उर्मिल जी की सप्ताह की नौटंकी पढ़ते हुए ही हम बड़े हुए थे। बहुत सारे मूल्यों और विडंबनाओं को हमें नट और नटी ने जिस खूबी से समझाया वैसा और किसी ने भी नहीं।
अपनी रचनाओं के जरिये हमेशा जीवित रहेंगे उर्मिल
- श्रद्धांजलि
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- 21 Jul, 2021

बचपन में जिन दो लेखकों ने हमारे भीतर व्यंग्य की समझ पैदा की उनमें से एक थे केपी सक्सेना और दूसरे थे उर्मिल कुमार थपलियाल।
इसलिए जब मुझे हिंदुस्तान अखबार में संपादकीय पेज की जिम्मेदारी मिली तो मैंने इन दोनों महान हस्तियों को अखबार से जोड़ने की कोशिश की। केपी सक्सेना अखबार में पहले भी लिखते रहे थे इसलिए उन्हें जोड़ने में तो दिक्कत नहीं आई लेकिन उर्मिल जी को जोड़ना आसान नहीं था और यह काम लखनऊ में नवीन जोशी जी के प्रयासों से ही संभव हो सका।
मज़ेदार वाकया
लेकिन उनके पहले ही व्यंग्य में एक दुर्घटना हो गई। उन्होंने अपना व्यंग्य एक कागज पर लिखकर हिंदुस्तान के लखनऊ दफ्तर में पहुंचा दिया, जिसमें कहीं भी उनका नाम नहीं लिखा था। वहां उसे वैसे ही कंपोज़ कर दिया गया और जैसी परंपरा है उसके काफी नीचे कंपोजिटर ने अपना नाम लिख दिया। वह हमें दिल्ली में मेल से भेजा गया। लेखक का नाम हमारे लिए नया था लेकिन व्यंग्य अच्छा था इसलिए हमने उस कंपोजिटर को ही लेखक मानकर उसके नाम से ही अखबार में छाप दिया।