मंगलेश डबराल (16 मई 1948 – 9 दिसंबर 2020) के नवीनतम और अंतिम काव्य संकलन का नाम है- `स्मृति एक दूसरा समय है’। सहज ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्मृति या स्मृतियों की उनके यहाँ एक ख़ास जगह है। अक्सर हम सुनते और पढ़ते रहते हैं, और यह सच भी है कि हम जिस दौर में रह रहे हैं उसमें राजनैतिक सत्ताएँ और पूँजी केंद्रित संस्थाएँ एक स्मृतिहीन समय रचने की कोशिश कर रही हैं। चेक उपन्यासकार मिलान कुंदेरा ने इसी को लक्षित करते हुए लिखा था- ‘मनुष्य का सत्ता के विरुद्ध जो संघर्ष है वो स्मृति की विस्मृति के ख़िलाफ़ लड़ाई है।’
स्मृतिहीनता के दौर में स्मृति के लिए सजग एक कवि
- श्रद्धांजलि
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- 11 Dec, 2020

पिछले कुछ बरसों में शायद ही कोई ऐसा मसला हो जिनको लेकर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी पक्षधरता न दिखाई हो। जब एम एम कलबुर्गी और नरेंद्र दाभोलकर के साथ अन्य कुछ लोगों की हत्याओं को लेकर हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं के लेखकों और साहित्यकारों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाए तो मंगलेश डबराल अग्रणी पंक्ति में थे।