लालटेन के उजाले में पिता जर्मन रीड वाले सुरीले हारमोनियम पर दुर्गा, मालकौंस, सारंग, पीलू, पहाड़ी और सुदूर जौनपुर-जौनसार की बोली के मीठे गीतों के स्वर निकालते थे। मालकौंस और दुर्गा शायद उनके प्रिय राग थे। दुर्गा की क्लासिक, पाठ्यक्रम में पढ़ाई जानेवाली बंदिश-‘सखी मोरी रूम झूम, बादल गरजे बरसे।।।’ वे डूबकर गाते।
'...जब मेरे गाँव का आखिरी पेड़ मुझसे ओझल हुआ'
- श्रद्धांजलि
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- 10 Dec, 2020

हिंदी के प्रख्यात लेखक, समकालीन हिन्दी कवियों में बेहद सम्मानित मंगलेश डबराल का निधन हो गया है। यह साहित्य जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। उनकी कविताएं हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी। भारतीय संगीत की उन्हें कितनी जबरदस्त जानकारी थी, ये उनके इस लेख से पता चलता है।
पहाड़ में पांच स्वर वाले रागों का चलन ज्यादा है और उनकी लय पहाड़ की प्रकृति से भी बहुत मेल खाती है। पिता के रागों के स्वर हारमोनियम से महीन रेशमी बादलों की तरह उठते और घर के नीम उजाले में तैरने लगते। बाहर घना अँधेरा रहता, काली हवा में जुगनू चमकते और पिता अंतरे की पंक्तियाँ गाते हुए घर को संगीतमय बनाते : ‘रेन अंधेरी कारी बिजुरी चमके मैं कैसे जाऊं पिया पास।’
मैं पिता के सामने इस तरह बैठा रहता जैसे एलपी रेकॉर्डों पर हिज मास्टर्स वाइस का कुत्ता ग्रामोफ़ोन के सामने बैठा होता है।
मंगलेश डबराल मशहूर साहित्यकार हैं और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं।