उसकी देह मिट्टी के रंग की है। कपड़ों का रंग भी मटमैला है। माथे पर सिन्दूर का टीका पुंछा हुआ है। वह एक हाथ से नंग-धड़ंग बच्चे को उठाये हुए है और उसके आगे-पीछे एक बेटी और एक बेटा हैं। उसके बाकी आठ हाथों में राशन के थैले हैं।
इस बार की दुर्गा है विस्थापित मज़दूरिन
- विचार
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- 24 Oct, 2020

प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और हिम्मत के अलावा कोविड महामारी के दृश्यों में बहुत विविधता है: कहीं दुर्गा असुरों की बजाय कांटेदार कोरोना वायरस का वध कर रही है तो कहीं जूट से विशाल आकार का वायरस बनाया गया है, जिसमें कांटो की जगह लाउडस्पीकर लगे हैं। एक और पंडाल ट्रक के आकार का है जिस पर कुछ प्रवासी मजदूर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
मंगलेश डबराल मशहूर साहित्यकार हैं और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं।