खय्याम जैसे धीमी उदासी के एक राग का नाम था। उनके प्रत्येक सुर के भीतर जैसे एक मद्धिम दर्द और अवसाद के स्पंदन बहते थे। यहाँ तक कि उल्लास और उम्मीद को व्यक्त करने वाली रचनाएँ भी एक कशिश और तड़प से भरी होती थीं। उसे ‘बहारो मेरा जीवन भी संवारो, कोई आये कहीं से’, ’चोरी-चोरी कोई आये चुपके-चुपके’, ‘आजा रे मेरे दिलबर आजा’, ‘तेरे चेहरे से नज़र हटती नहीं’, ‘फिर छिड़ी रात बात फूलों की’, ‘दिखाई दिए यूँ कि बेसुध किया’ और ‘इन आँखों की मस्ती में मस्ताने हज़ारों हैं’ में सुना और महसूस किया जा सकता है।