‘सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
‘हमारे सपनों का मर जाना’: कविताओं में पूरी तरह ज़िंदा हैं पाश!
- विचार
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- 10 Sep, 2019

लेखकों की मृत्यु उनके लेखन की मृत्यु से ही पहचानी जा सकती है। पाश अपनी कविता में पूरी तरह जीवित कवि हैं। इस अर्थ में भी कि उनकी तमाम कवितायें मृत्यु का निषेध करती हैं, मनुष्य को सपनों के मरने के ख़िलाफ़ चेतावनी देती रहती हैं और आज के भयावह फ़ासिस्ट सियासी माहौल में वे और भी अधिक प्रासंगिक बन गयी हैं।
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना’
‘सबसे ख़तरनाक होता है’ एक ऐसी कविता है जिसे शायद पिछले तीन दशक में जागरूक पाठकों द्वारा सबसे अधिक पढ़ा गया। उसके रचनाकार पाश अगर आज होते तो जीवन के सत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते। लेकिन 22 मार्च 1988 को महज़ 38 वर्ष की उम्र में उनके गाँव तलवंडी सलेम में खालिस्तानी उग्रवादियों ने उनकी हत्या कर दी। वजह यह थी कि पाश खालिस्तानियों के विरोध और जनता की वास्तविक क्रांति के पक्ष में आवाज़ बुलंद करते थे। लेकिन इस शहादत के बाद पाश की कविता की उम्र बढ़ती गयी है, हिंदी सहित अनेक भाषाओं में उनकी कविताओं के अनुवाद हुए और उन्हें क्रांति के स्वप्न को जीवित रखने वाले सबसे बड़े आधुनिक कवि के रूप में प्रतिष्ठा मिली। ‘सबसे ख़तरनाक होता है’ के साथ उनकी एक और कविता भी संघर्ष के गीत की तरह प्रचलित हुई, जिसकी कुछ पंक्तियाँ हैं:
मंगलेश डबराल मशहूर साहित्यकार हैं और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं।