अलविदा सुरेखा जी।'चेरी आर्चर्ड' की डिजाइन और उसका मंचन, एक प्रयोग कर रहा था, जब प्रेक्षक खुद अनजाने नाटक का हिस्सा बन जाए। नाट्य मंच पर प्रेक्षक जिसे सरल भाषा में दर्शक कह दिया जाता है - दर्शक की सीट से उठे और मंच पर जाकर उसका हिस्सा बन जाए, चेरी का बगीचा उसी का प्रयोग था। अमेरिकन निदेशक (शायद वेन विद्ज थे) मंचन की यह विधा बनारस की रामलीला से देख कर प्रयोग कर रहे थे।
अलविदा सुरेखा जी! आपका हर जिया हुआ चरित्र ज़िंदा रहेगा!
- श्रद्धांजलि
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- 16 Jul, 2021

सुरेखा जी महज रंगमंच या अपने जी रहे चरित्र को लेकर ही संजीदा नहीं थीं, बल्कि अपने निजी रिश्तों का निर्वहन भी बड़ी संजीदगी से करती थीं। अनगिनत पात्र जी कर विदा हुई हैं रंगमंच, फ़िल्म और टीवी अदाकार के रूप में और उनका हर जिया हुआ चरित्र ज़िंदा रहेगा। बहुत याद आएँगी सुरेखा जी।
सीता अपनी कुटिया में अकेली बैठी है। कुटिया की बनावट काफी हद तक खुले विन्यास में थी। उसके एक ताख में जलता हुआ दिया था। दर्शकों की भीड़ आ रही है, सीता के दर्शन कर, जयकार करती आगे बढ़ती है दूसरे 'मंच' की तरफ़ जहाँ रामचरित मानस का दूसरा चरित्र बैठा है।