मंगलेशजी जनसत्ता की शुरुआती टीम में थे। और उन्हें रविवारीय मैगजीन का संपादन मिला था। उस समय जनसत्ता की टीम में हर तरह की विचारधारा के लोग थे और हर व्यक्ति अपने लोगों को ही प्रमोट करने अथवा नए रंगरूटों को अपने पाले में लाने की फ़िराक़ में रहता था।
जन सरोकारों व आम लोगों के दुःख-दर्द से जुड़े रहे मंगलेश
- श्रद्धांजलि
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- 11 Dec, 2020

भाषा के मामले में मंगलेशजी का जोड़ नहीं था। चूँकि वे मूल रूप से कवि थे इसलिए उनका गद्य इतना ललित और प्रवाहमान होता कि उसे समझने में कभी किसी को कोई दिक़्क़त नहीं होती।
यह वह दौर था, जब एक तरफ़ तो पूरा जनसत्ता एक नए क़िस्म की हिंदी पत्रकारिता के मानक गढ़ रहा था। एक नए तरह की भाषा को प्रचलन में ला रहा था और जनता की भावनाओं के अनुकूल उस पत्रकारिता को स्थापित कर रहा था, जहां लोग इस अख़बार से आगे आकर जुड़ते थे।
मैं उस समय जनसत्ता के संपादकीय पेज से जुड़ा था, जिसे संपादक प्रभाष जोशी ख़ुद अपनी निगरानी में ही जाने देते थे। अख़बार में तब बनवारी, हरिशंकर व्यास और सतीश झा सहायक संपादक थे।