‘ऐसे किले जब टूटते हैं तो अन्दर से भरभराकर टूटते हैं!’ सन 1972 में जब यह वाक्य दिल्ली के पुराने किले के ऐतिहासिक अवशेषों के विस्तार में खुले आसमान के नीचे गूंजा था, तो दर्शकों ने उसे इंदिरा गांधी की सल्तनत के भीतर दरारें पड़ने के रूपक के तौर पर समझा था।
अल्काजी: एक बड़े पर्दे का गिरना
- श्रद्धांजलि
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- 6 Aug, 2020

अल्काजी 95 वर्ष की भरपूर उम्र में दुनिया को छोड़ कर गए हैं। लेकिन जाना हमेशा के लिए एक विशाल नाट्य-दृश्य के पर्दे का गिरना है जो अब कभी खुलेगा नहीं।
यह गिरीश कर्नाड के नाटक ’तुग़लक’ का संवाद था। वह एक बड़ी सामजिक-राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था, जिसकी परिणति आख़िरकार इमरजेंसी में हुई हालांकि उसके संकेत सन 1972 से ही मिलने लगे थे।
मंगलेश डबराल मशहूर साहित्यकार हैं और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं।