देश के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा आदर्शवादी राजनीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे। आज के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है उनके राजनीतिक और धार्मिक होने के मायने काफी अलग थे। वह भारत को आधुनिक बनाने के पक्षधर अवश्य थे लेकिन वह सभी धर्मों और वर्गों को समतल पर देखना चाहते थे। नन्दा सच्चे अर्थों में गांधीवादी मूल्यों पर खरा उतरने वाले शख्स थे। अफसोस ये है कि सर्वधर्म समभाव की बात करने वाले नन्दा को जीवन के अन्तिम दिन बड़े कष्ट से व्यतीत करने पड़े। वह उच्च पदों पर रहकर भी जीवन की आम जरूरते पूरी नहीं कर पाए। कभी किराए ना देने की वजह से मकान-मालिक ने धक्के देकर बाहर कर दिया तो कभी 500 रूपये मासिक पेंशन में खर्च चलाते दिखे। जिस देश में ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य तक के अपने ठाठ-बाट हों वहां गुलज़ारी लाल नंदा होना आम बात नहीं है।