हाल के अपने ‘कृत्यों’ की वजह से भारतीय मीडिया जनता की ज़बरदस्त आलोचना का शिकार है। एक तरफ़ ‘गोदी मीडिया’ है जो ‘राष्ट्र-भक्ति’ के नये रसधार में डूबते-उतराते एक दाढ़ीवाले और एक तिलक वाले को बैठा कर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ रोज़ाना ‘प्राइम-टाइम’ में धोबी-पछाड़ दाँव का प्रयोग करता है तो दूसरी ओर ‘सेक्युलर’ मीडिया का छोटा-सा लेकिन ‘जहर से स्याह हुआ’ वर्ग है जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर काम में खोट नज़र आता है। मसलन, मोदी के कपड़े, मोदी की विदेश-यात्रा, मोदी का चीनी नेता जिनपिंग को झूला झुलाना और फिर उसी चीन से युद्ध की तैयारी करना असफलता की पराकाष्ठ लगती है। मोदी की ग़लतियों से अगर जनता को मुतास्सिर करना ही है तो फ़सल बीमा योजना, स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया की असफलता को सरकार के ही आँकड़ों से सिद्ध कर सकते हैं पर इसके लिए पढ़ाई करनी पड़ेगी, जो भडैती की आदत पड़ने पर ख़त्म हो जाती है।
मीडिया में सुधार चाहते हैं तो अनपढ़ पत्रकारों को रिजेक्ट करें
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- 22 Aug, 2020

चुनाव में कोई मीडिया हाउस अन्य सभी चैनलों या अख़बारों से अलग अगर लगातार किसी एक पार्टी की भावी जीत की ख़बर परोस रहा है तो कोई भी उसकी समझ को क़ानूनन ग़लत नहीं ठहरा सकता। भले ही चुनाव के बाद वह पत्रकार या मालिक राज्य-सभा का सदस्य बना दिया जाए या नागरिक सम्मान से नवाज़ा जाए या उस पार्टी की सरकार उसे कोई बड़ा विज्ञापन दे दे।