तर्क-शास्त्र में एक प्रमुख लेकिन बेहद “चालाकी भरा” दोष होता है- वर्तमान वैल्यू-सिस्टम को ऐतिहासिक घटना या उसके किरदार पर चस्पा कर उसका महिमा-मंडन करना या छवि खराब कर फिर से इतिहास गढ़ना। इस दोष को “प्रेसेन्टीज्म” बनाम “हिस्टोरीसिज्म” के नाम से जाना जाता है। इसका सहारा लेकर किसी इतिहास-पुरुष की छवि कालांतर में खराब करना बहुत आसान होता है। ऐसा करने के लिए मात्र “पसंद के तथ्यों को प्राथमिकता देनी” होती है। सत्ताधारी वर्ग के लिए यह काम और आसान हो जाता है।
नेहरू-निंदा को छोड़कर वर्तमान संभालो सरकार
- विचार
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- 19 Sep, 2020

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की किताब में आजाद भारत के बाद की चार घटनाओं का जिक्र है। 1971 का बांग्लादेश युद्ध, 1991 का उदारीकरण, 1998 का परमाणु पोखरण परीक्षण और 2008 का परमाणु समझौता। यानी तीन पुरुषार्थ- इंदिरा गाँधी, नरसिम्हा राव, मनमोहन काल के और एक वाजपेयी काल का। लेकिन एक भी नेहरू युग का नहीं। किताब के बाकी हिस्से में तो “मोदी-शासन का गुणगान और कैसे इस काल में वैश्विक परिदृश्य में मोदी-इफ़ेक्ट ने भारत को शिखर पहुँचाया” अदि का जिक्र है।