भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच सीटों का समझौता हो गया और वे अगला लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगी, साधारण दिखने वाली यह घोषणा दोनों दलों ही नहीं, देश की राजनीति पर कई सवाल खड़े करती है। दोनों के बीच जो जूतम-पैज़ार हुई और दोनों के बीच जो कटुता थी, और उसके बाद उन्होंने जिस तरह एक साथ चुनाव लड़ने की कसमें खाईं, उससे यह सवाल उठता है कि क्या राजनीति में निजी फ़ायदे के लिए किसी हद तक जाया जा सकता है। राजनीति में 'अनजान लोगों के एक साथ सोने' की बात तो कही जाती है, राजनीति को 'असंभव संभावनाओं की दुनिया' माना जाता है, पर क्या कहीं कोई सीमा नहीं होती है, ये सवाल लाज़िमी हैं।