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क्या कमलनाथ और दिग्विजय सिंह हैं सरकार पर आई मुसीबत के असली ‘दोषी’?

मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गहरे संकट में डालने का असली ‘दोषी’ कौन है? ज्योतिरादित्य सिंधिया और फिर कांग्रेस विधायकों के धड़ाधड़ इस्तीफ़ों के बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारों में इसी ‘दोषी’ को ढूंढा जा रहा है। कांग्रेस विधायकों की बग़ावत के बाद कमलनाथ सरकार का जाना लगभग तय हो चुका है। यह सरकार कब और कैसे जायेगी? और मध्य प्रदेश के भविष्य को नये सिरे से संवारने का जिम्मा किसके हाथों में होगा? इन सवालों का जवाब दो-तीन दिन में मिल जायेगा।

फिलहाल, सबसे बड़ा सवाल यही है कि कमलनाथ सरकार की लुटिया किन कारणों से और किन लोगों की वजह से डूबी? 15 साल के सत्ता के वनवास के बाद बहुमत से दो सीटें कम (114 सीटें) जीतकर कमलनाथ की अगुवाई में दिसंबर, 2018 में बनी सरकार चार निर्दलीय विधायकों के अलावा बसपा के दो और सपा के एक विधायक की मदद से चल रही थी। कांग्रेस के पास कुल आंकड़ा 121 विधायकों का था जबकि बीजेपी 109 सीटें जीतकर विपक्ष में बैठी थी।

मध्य प्रदेश कांग्रेस में कलह पहले दिन से ही यानी कमलनाथ को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुने जाने के दिन से ही शुरू हो गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। सिंधिया के दर्द को कांग्रेस आलाकमान ने नजरअंदाज किया।

मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने कई मौक़ों पर सिंधिया को बेइज्जत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सिंधिया राजघराने से जमकर खार खाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी मौक़ा मिलने पर सिंधिया को कुंठित करते रहे।

होती रही सिंधिया की अनदेखी

अनदेखी और हक़ के अनुसार तवज्जो ना मिलने से बुरी तरह आहत सिंधिया ने अनेक अवसरों पर खुलकर अपने ‘गुस्से’ का इजहार किया। लेकिन पार्टी नेतृत्व और कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी सिंधिया को ‘अंडर-एस्टीमेट’ करती रही। सिंधिया कोटे से नाथ सरकार में मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया द्वारा हालिया राजनीतिक संकट (ऑपरेशन लोटस) के बीच दिये गये संकेतों को भी नाथ-दिग्विजय और आलाकमान ने ‘अनदेखा’ कर दिया। सिसोदिया ने खुलकर कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को नजर अंदाज करना कांग्रेस को बेहद महंगा पड़ेगा। 

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सिसोदिया की चेतावनी सिंधिया को राज्यसभा का टिकट न देने के बाद बनने वाली स्थितियों को लेकर थी। सिंधिया समर्थक चेताते रहे और उधर बग़ावत का झंडा उठाने वाले विधायकों को वापस लाकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने समझ लिया कि बीजेपी के प्लान को उन्होंने फ़ेल कर दिया है। तब कमलनाथ ने मीडिया से कहा था, ‘आल इज वैल।’ लेकिन बीजेपी ‘पार्ट टू’ में जुट गई थी। 

सोमवार को कांग्रेस की ‘रेंज’ से बाहर हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी और कमलनाथ सरकार को मंगलवार दोपहर को ‘जोर का झटका’ दे दिया। सिंधिया के बाद उनके समर्थक 19 विधायकों (इनमें छह नाथ सरकार में मंत्री थे) ने इस्तीफ़ा दे दिया। 

कंपनी की तरह चलाई सरकार 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ जो हुआ, उसके असली और पहले बड़े दोषी खुद कमलनाथ माने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्ष का पद कमलनाथ के पास था। चुनाव से पहले कमलनाथ ने पीसीसी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया। सरकार को भी वह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी चलाने वाले ‘ओनर’ की तरह ही चलाते रहे।

जिन विधायकों की वजह से सरकार और खुद सीएम का वजूद होता है, उन विधायकों को कमलनाथ बहुत गंभीरता से लेते नजर नहीं आये। विधायकों के लिए उनके पास ‘वक्त’ नहीं होता था। मिलते भी थे तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के ‘मालिक और मुलाजिम’ वाले अंदाज में।

दिग्विजय सिंह के बेहद कट्टर समर्थक और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बिसाहूलाल सिंह ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा कि कमलनाथ विधायकों को जमकर अपमानित करते हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र की समस्याएं लेकर पहुंचने वाले कनिष्ठ से लेकर वरिष्ठ विधायकों और मंत्रियों को कमलनाथ लज्जित कर कमरे से निकाल देते हैं।

कैबिनेट की बैठकों में भी कमलनाथ का मंत्रियों से सीधा ‘टकराव’ हुआ। सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने नाथ से उन्हीं की ‘भाषा’ में बात की और जवाब देने से भी परहेज नहीं किया। इसकी ख़बरें मीडिया में छायी रहीं। लेकिन कुर्सी की खातिर कई मंत्री-विधायक खून का घूंट पीते रहे।

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‘तो सड़क पर उतर जायें’ ले डूबा

सरकार की मुसीबत का एक अहम कारण कमलनाथ के उस बयान को भी माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने सिंधिया से सड़क पर उतर जाने के लिये कहा था। सिंधिया ने किसानों और जनता से किये गये चुनावी वायदे पूरा न होने पर अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी थी। लेकिन सिंधिया के बयान को कांग्रेस आलाकमान ने गंभीरता से नहीं लिया और कमलनाथ ने सिंधिया को ‘ललकार’ भी दिया।

संकट का आभास होने पर दिग्विजय सिंह ने 2 मार्च को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि बीजेपी कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। तब भी सिंधिया के तेवर साफ नजर आये थे लेकिन कमलनाथ और आलाकमान ने सिंधिया को विश्वास में लेने की कोशिश तक नहीं की।

कमलनाथ-दिग्विजय ने किया खेल 

सिंधिया और उनके समर्थकों ने कई बार मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद मांगा। लेकिन कमलनाथ इसके लिए तैयार नहीं हुए। रही-सही कसर राज्यसभा के लिए होने वाले चुनावों की रणनीति बनाते वक्त कमलनाथ-दिग्विजय ने पूरी कर दी। दोनों नेताओं ने कुछ इस तरह की ‘व्यूह रचना’ रची कि सिंधिया राज्यसभा जाने वाले नेताओं की दौड़ से भी बाहर कर दिए गए।

सिंधिया ने सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का वक्त मांगा। सोनिया ने वक्त नहीं दिया। अंततः युवा और ऊर्जावान करार दिये जाने वाले सिंधिया ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ने का निर्णय ले डाला। इधर, बीजेपी ने भी देर नहीं कि और वह कांग्रेस के ढहते किले के चमकीले ‘कंगूरे’ को अपने ‘घर में सजाने’ के लिये तैयार हो गई।

आगे क्या होगा?

सिंधिया के बुधवार को बीजेपी में शामिल होने के आसार हैं। लेकिन बदले में पार्टी उन्हें क्या देगी, यह 13 मार्च से पहले स्पष्ट हो जायेगा। मध्य प्रदेश में तीन राज्यसभा सीटों के लिए इसी महीने चुनाव होना है और नामांकन दाख़िल करने की आख़िरी तारीख़ 13 मार्च है। बीजेपी सिंधिया को राज्यसभा भेजेगी, ऐसी सुगबुगाहट है। 

ख़बरें आ रही हैं कि सिंधिया बीजेपी में धमाकेदार ढंग से एंट्री करना चाहते हैं। दिल्ली से पहले वह ग्वालियर आयेंगे और इसके बाद भोपाल में पार्टी में शामिल होने की उनकी मंशा है। कहा जा रहा है सिंधिया अपने गृह राज्य में बीजेपी में शामिल होने से पहले जोरदार और यादगार स्वागत कराने के मूड में भी हैं।

चूंकि पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह एवं सिंधिया के बीच ‘सीधी बार्गेनिंग’ हुई है, लिहाजा मोदी-शाह पार्टी में सिंधिया की एंट्री संबंधी निर्देश अवश्य देंगे। ताज़ा सियासी संकट सिंधिया के लिए ही ‘फायदे का सौदा’ नहीं है बल्कि बीजेपी को भी इसका लाभ होगा।

मध्य प्रदेश बीजेपी में बढ़ेगी कलह 

सिंधिया को लेकर बीजेपी में जो होगा सो होगा। मगर, सिंधिया समर्थक विधायक बीजेपी में आते हैं तो बीजेपी की अंदरूनी राजनीति जमकर गरमायेगी, यह बात तय मानी जा रही है। ख़बरें आ रही हैं ‘सौदेबाजी’ के तहत सुनिश्चित हुआ है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने या चुनाव की स्थितियां पैदा होने पर हरेक सिंधिया समर्थक विधायक का बीजेपी ‘पूरा ख्याल’ रखेगी। ख़बर यह भी है कि बीजेपी की सरकार बनने पर सिंधिया कोटे से किसी को उपमुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है।

बड़ा सवाल यही है कि बीजेपी की सरकार बनने पर सिंधिया समर्थक 19 विधायकों को बीजेपी कैसे एडजस्ट कर पायेगी? प्रश्न यह भी है कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों से ये विधायक आते हैं, वहां बीजेपी के पुराने लोगों का टिकट कटने पर क्या विद्रोह नहीं होगा?
ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया जनसंघ से बीजेपी के दौर तक पार्टी की वफादार रहीं हैं। बावजूद इसके बीजेपी का एक धड़ा उन्हें कुंठित और लज्जित करता रहा। अन्य दलों में भी कई ऐसे चमकीले नाम हैं जिन्हें मध्य प्रदेश में पन्द्रह सालों के बीजेपी के राज में पार्टी ज्वाइन कराने के बाद हाशिये पर डाल दिया गया। ये नेता बीजेपी में इस कदर साइड लाइन किये गये कि दोबारा उबर ही नहीं पाये और इनकी राजनीति लगभग ख़त्म हो गई। लेकिन क्या सिंधिया इससे बचकर बीजेपी में राजनीति कर पायेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
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संजीव श्रीवास्तव
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