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मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल महाघोटाले की जाँच एक बार फिर पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चली गई है। महाघोटाले की जाँच करने वाले एसटीएफ़ अफ़सरों और अमले को शिवराज सरकार ने कोरोना ड्यूटी में लगा दिया है। इस क़दम के बाद से मध्य प्रदेश की नई सरकार सवालों के घेरे में है।
बता दें कि लगातार 15 साल तक मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ रहने वाली बीजेपी की सरकार को पलटकर 2018 में मध्य प्रदेश की बागडोर संभालने वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ ने व्यापमं महाघोटाले की फ़ाइलों से धूल हटाई थी। मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ ने व्यापमं महाघोटाले को रि-ओपन किया था। साल 2014-15 से लंबित पड़ी 200 के लगभग शिकायतों की जाँच के अलावा पूर्व की लंबित जाँचों को नये सिरे से शीघ्र पूरा करने के आदेश उन्होंने दिये थे।
कमलनाथ सरकार का आदेश मिलते ही मध्य प्रदेश एसटीएफ़ तमाम लंबित शिकायतों की और पुरानी लंबित जाँचों के निपटारे में जुट गया था। कुछ नई गिरफ्तारियाँ नाथ सरकार में इस मामले को लेकर हुई थीं। मुख्यमंत्री कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सरकार के कई मंत्रियों ने ताल भी ठोकी थी कि - 'व्यापमं महाघोटाले के कई काले अध्यायों को मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार बहुत शीघ्र सूबे की जनता के सामने रखेगी।' जाँच अंजाम तक पहुँचती और हक़ीक़त सामने आती, इसके पहले ही कमलनाथ की सरकार चली गई।
चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही शिवराज सिंह चौहान ने सबसे पहला काम व्यापमं महाघोटाले की नये सिरे से जाँच में जुटे एसटीएफ़ के मुखिया अशोक अवस्थी को हटाने का किया। अवस्थी को हटाने पर अनेक सवाल कांग्रेस ने उठाये थे। तमाम आरोप भी लगाये गये। ठोस जवाब सरकार की ओर से इस पर नहीं आया।
शिवराज सरकार अब एसटीएफ़ के अमले की ड्यूटी कोरोना जंग में लगाने को लेकर सवालों के घेरे में है। सरकार ने भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर एसटीएफ़ के पुलिस अधीक्षकों को कोरोना की ड्यूटी में लगा दिया है। चारों ही ज़िलों के 200 के लगभग स्टाफ़ को भी कोरोना महामारी से जुड़े कार्यों में लगा दिया गया है। भोपाल स्थित एसटीएफ़ मुख्यालय तो लगभग खाली हो गया है।
कांग्रेस मीडिया सेल के प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने शिवराज सरकार की नीयत पर सवाल उठाए और ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मध्य प्रदेश पुलिस में योग्य अफ़सरों की लंबी फ़ौज है। पुलिस मुख्यालय में अनेक ऐसे अफ़सर हैं, जिनके पास फ़िलहाल कोई काम नहीं है। सरकार चाहती तो उनकी ड्यूटी कोरोना नियंत्रण कामों में लगा सकती थी। मगर एसटीएफ़ के अमले को केवल और केवल व्यापमं महाघोटाले की जाँच को रोकने के लिए कोरोना ड्यूटी में लगाया गया है।’
गुप्ता यहीं नहीं रुके और उन्होंने हज़ारों करोड़ रुपये के ई-टेंडरिंग घोटाले तथा चर्चित हनी ट्रैप कांड की जाँच कर रहे आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक को हटाने पर भी प्रश्न उठाये। गुप्ता ने कहा कि दोनों ही अहम मामलों के सच पर परदा डालने और लीपापोती करने की नीयत से जाँच करने वाले ईमानदार एसपी को सरकार ने पहले हटाया। बाद में शिवराज सरकार में मंत्री रहे एक मौजूदा वरिष्ठ भाजपा विधायक के आईपीएस भाई को ईओडब्ल्यू में एसपी बना दिया गया। सरकार की क्या मंशा है? गुप्ता ने आगे कहा कि ईमानदार अफ़सर को हटाकर अपनों को बिठाना स्वमेव सबकुछ स्पष्ट कर रहा है।
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