शाहबानो की रूह आज भी ‘छटपटा’ रही होगी! जी हाँ, वही शाहबानो, जिन्होंने भारत में सबसे पहले ‘तलाक़-ए-बिद्दत’ (तीन तलाक़) के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। मुसलिम पर्सनल लॉ और इसलाम धर्म के रीति-रिवाज़ों को खुली चुनौती देने वाली शाहबानो संयोगवश मध्य प्रदेश की रहने वाली थीं। सात साल की लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद 1985 में तीन तलाक़ को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक क़रार दिया था तो माना गया था कि शाहबानो की मेहनत सफल हो गई। हालाँकि फ़ैसला शाहबानो और उन सरीखी मजलूम मुसलिम महिलाओं को कुछ ही दिनों की खुशी और राहत देने वाला साबित हुआ था। राजीव गाँधी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले को 1986 में संसद में एक क़ानून लाकर भोथरा कर दिया था और शाहबानो जीत कर भी ‘हार’ गई थीं।