शाहबानो की रूह आज भी ‘छटपटा’ रही होगी! जी हाँ, वही शाहबानो, जिन्होंने भारत में सबसे पहले ‘तलाक़-ए-बिद्दत’ (तीन तलाक़) के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। मुसलिम पर्सनल लॉ और इसलाम धर्म के रीति-रिवाज़ों को खुली चुनौती देने वाली शाहबानो संयोगवश मध्य प्रदेश की रहने वाली थीं। सात साल की लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद 1985 में तीन तलाक़ को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक क़रार दिया था तो माना गया था कि शाहबानो की मेहनत सफल हो गई। हालाँकि फ़ैसला शाहबानो और उन सरीखी मजलूम मुसलिम महिलाओं को कुछ ही दिनों की खुशी और राहत देने वाला साबित हुआ था। राजीव गाँधी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले को 1986 में संसद में एक क़ानून लाकर भोथरा कर दिया था और शाहबानो जीत कर भी ‘हार’ गई थीं।
तीन तलाक़ : आज भी ‘छटपटा’ रही होगी शाहबानो की रूह!
- मध्य प्रदेश
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- 1 Aug, 2019

शाहबानो की रूह उसी तरह से छटपटा रही होगी, जैसी कि जीवित रहते 1985 में सुप्रीम कोर्ट से केस जीत लेने के बाद संसद द्वारा कोर्ट का फ़ैसला पलट दिये जाने से उसके मन पर बीतती रही थी!
तलाक़-ए-बिद्दत को अपराध क़रार दिए जाने वाला विधेयक मंगलवार को राज्यसभा में पारित हुआ तो कहा गया, ‘34 साल पहले शाहबानो ने सुप्रीम कोर्ट से करोड़ों मुसलिम महिलाओं के लिए जो हक़ लिया था और उसे संसद ने छीन लिया था आज उसी संसद ने मुसलिम औरतों के उस वाजिब हक़ को ससम्मान लौटा दिया।’ लोकसभा में बिल पहले ही पारित हो चुका था। हालाँकि यद्यपि राज्यसभा में बिल पास हो जाने के बाद जिस तरह की राजनीति शुरू हुई है - उसे देखते हुए यह भी कहा जा रहा है, ‘शाहबानो की रूह उसी तरह से छटपटा रही होगी, जैसी कि जीवित रहते 1985 में सुप्रीम कोर्ट से केस जीत लेने के बाद संसद द्वारा कोर्ट का फ़ैसला पलट दिये जाने से उसके मन पर बीतती रही थी।’