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बाबूलाल मरांडी
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सियासत आये दिन नए रंग दिखलाती है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बुधवार को राजनीति का एक ऐसा ही ‘नया रंग’ दिखाई पड़ा। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की ‘भुट्टा पार्टी’ (भोज) में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विजयवर्गीय के साथ मशहूर फिल्म ‘शोले’ का सदाबहार गीत ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ गाया तो इसकी बेहद चर्चा हुई। राजनीतिक से लेकर प्रशासनिक गलियारों और राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों में यह सवाल ‘गूंज’ गया कि चौहान ने विजयवर्गीय के साथ यह ‘जुगलबंदी’ आखिर क्यों की?
भोपाल के सियासी और प्रशासनिक हलकों के साथ राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिये बुधवार की शाम कई नए सवालों को जन्म दे गई! दोनों नेताओं ने पूरे जोश के साथ ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे...’ गीत को गाया।
फिल्म ‘शोले’ की कहानी बेमिसाल दोस्ती का संदेश देती है। साल 1975 में प्रदर्शित हुई फिल्म के मशहूर गीत ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ को गहरे दोस्त आज भी सबसे पहले गाते और गुनगुनाते हैं।
विजयवर्गीय के साथ शिवराज सिंह ने इस गीत को गाया तो सवाल उठने लगे? निहितार्थ खोजे जाने लगे? दरअसल, कभी बहुत अच्छे दोस्त रहे विजयवर्गीय और शिवराज सिंह के बीच अब वैसे रिश्ते नहीं रहे हैं जो कभी हुआ करते थे। यही मुख्य कारण रहा, इस ‘जुगलबंदी’ पर सवाल उठने का।
कैलाश विजयवर्गीय भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार होते रहे हैं। लेकिन पार्टी ने उनकी हरसत को कभी परवान नहीं चढ़ने दिया।
अलबत्ता, राजनीति में नये आयाम गढ़ने के लिये शिवराज सिंह की अनेक अवसरों पर मदद करने वाले विजयवर्गीय को वक्त के सामने मजबूर होना पड़ा। उधर, वक्त साथ हुआ तो एक के बाद एक लगातार तीन बार और कमल नाथ सरकार के गिरने के बाद चौथी बार भी शिवराज सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने में सफल रहे।
जबकि विजयवर्गीय को शिवराज सिंह के नेतृत्व में न केवल काम करना पड़ा, बल्कि इंदौर के उनके ‘एक छत्र राज’ का तानाबाना ‘पुराने दोस्त’ शिवराज सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में तार-तार होकर बिखरता चला गया।
लंबे वक्त से सुगबुगाहट बनी हुई है कि उत्तराखंड और कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी बीजेपी नेतृत्व परिवर्तन कर सकती है। हालांकि इस मसले पर रणनीतिकार चुप्पी साधे हुए हैं।
कैलाश विजयवर्गीय ‘भुट्टा पार्टी’ से ठीक पहले शिवराज सिंह के विरोधी माने जाने वाले मध्य प्रदेश सरकार के मंत्रीगणों कमल पटेल, अरविंद भदौरिया और इंदर सिंह परमार से मिले। बंद कमरों में इनसे चर्चाएं कीं।
शिवराज के अन्य धुर विरोधी मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता डॉक्टर गौरीशंकर शेजवार से मिलने भी विजयवर्गीय पहुंचे।
विजयवर्गीय ने बीते माह भी भोपाल से लेकर दिल्ली तक शिवराज विरोधी नेताओं के साथ नाश्ते, दोपहर और रात्रि भोज किये थे। इन गतिविधियों के बाद राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई थीं। इन तमाम गतिविधियों को नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं से जोड़कर देखा गया था। हालांकि विजयवर्गीय ने तमाम मुलाकातों को सामान्य और शिष्टाचार वाली बताकर मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं को सिरे से खारिज किया था।
विजयवर्गीय ने कहा था, “मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बदलने संबंधी संभावनाएं एकतरफा हैं और यह महज मीडिया के दिमाग की उपज है। मुख्यमंत्री नहीं बदले जायेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही रहेंगे।”
नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं को लेकर ‘भुट्टा पार्टी’ के पहले हुए सवाल के जवाब में भी विजयवर्गीय ने पुराना जवाब दोहराया, ‘मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ही रहेंगे।’विजयवर्गीय ने कहा, “ग्वालियर-चंबल संभाग में बाढ़ आने पर शिवराज सिंह रात भर सोए नहीं थे। वे संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने बाढ़ का सामना बड़े ही साहसिक तरीके से किया।”
मीडिया ने जवाबों की ‘नई शैली’ पर चुटकी ली और प्रतिप्रश्न किया कि जवाब छोटे हो चले हैं तो विजयवर्गीय ने चुटीले अंदाज में कहा कि वे ऐसी खबर भी देंगे जिससे अखबार के पूरे-पूरे पेज रंग जायेंगे।
कैलाश विजयवर्गीय की ‘भुट्टा पार्टी’ नई नहीं है। वे जब मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री थे तब उन्होंने ‘भुट्टा पार्टी’ की शुरूआत की थी। विजयवर्गीय की इस पार्टी का बेसब्री से इंतजार हुआ करता था।
पार्टी मीडिया वालों से आरंभ हुई थी और बाद में इसका विस्तार होते चला गया था। मंत्री न रहने के बाद भी विजयवर्गीय ने भोपाल में भुट्टा पार्टी का सिलसिला जारी रखा। कोरोना की वजह से पिछले साल पार्टी नहीं हो पायी थी।
विजयवर्गीय की ‘भुट्टा पार्टी’ में पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष कमल नाथ समेत कांग्रेस के अनेक विधायक भी पहुंचे। नाथ ने पार्टी में कई अवसरों पर ठहाके भी लगाये।
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