क्रिसमस के दिन मध्यप्रदेश में अपने दल के विधायकों के बीच ‘सांता क्लॉज’ की भूमिका निभाने वाले मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है। मंत्री पद नहीं मिलने से कई विधायक ख़ासे ख़फ़ा हैं। दिग्विजय सिंह के बेहद नज़दीकी विधायकों में शुमार एक विधायक के समर्थक ने तो पार्टी पदाधिकारी पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। मुरैना ज़िले में यह इस्तीफ़ा हुआ है। जिले में और कई लोग पार्टी छोड़ सकते हैं।
कमलनाथ की अगुवाई वाली मध्यप्रदेश की नई सरकार अल्पमत वाली सरकार है। राज्य विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। स्पष्ट बहुमत के लिए 116 सीटें चाहिए, कांग्रेस कुल 114 सीटें ही जीत सकी हैं। बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। इस हिसाब से कांग्रेस की सदन में कुल संख्या स्पष्ट बहुमत से पांच ज़्यादा यानी कुल 121 है। कमलनाथ ने 25 दिसंबर को अपने कैबिनेट का गठन किया। पहली खेप में कुल 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई।
अपनों पर बेरहम
कमलनाथ ने तमाम झंझावतों से बचने के लिए अपने ही गुट के अनेक विधायकों का पत्ता काटा है। विधायकों को जतलाने के लिए कमलनाथ ने ख़ुद अपने शहर छिंदवाड़ा से तीसरी बार के विधायक दीपक सक्सेना को मंत्री नहीं बनाया। दिग्विजय सिंह स्वयं अपने अनुज लक्ष्मण सिंह को मंत्री बनवाने से बचे, हालांकि कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को मंत्रिमंडल में लिया है।
शपथ ग्रहण समारोह वाले दिन ही उन विधायकों के चेहरे बुझे हुए थे जो मानकर चल रहे थे जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के मद्देनज़र उन्हें मंत्री पद अवश्य मिलेगा। मंत्री ना बनाए जाने पर कई विधायक भोपाल में होते हुए भी शपथ ग्रहण समारोह में नहीं पहुंचे थे।
दिग्विजय के आदमी को जगह नहीं
दिग्विजय सिंह के बेहद ख़ास विधायकों में शुमार पूर्व मंत्री बिसाहूलाल सिंह को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। विंध्य क्षेत्र की कुल 30 सीटों में कांग्रेस महज छह सीटें ही जीत सकी थीं। इन छह सीटों में बिसाहूलाल सिंह की अनूपपुर सीट भी है। मंत्री नहीं बनाए जाने से सिंह बेहद दु:खी हैं।
बताया गया था कि दिग्वियज सिंह ने कैबिनेट के गठन के बाद बिसाहूलाल सिंह और ऐंदल सिंह कंसाना की मुलाकात कमलनाथ से कराई थी। दरअसल मंत्रिमंडल में सदस्यों की कुल संख्या 35 हो सकती है। अभी छह सीटें खाली हैं। ऐसे में दोनों को आश्वासन मिला था कि जल्दी मंत्री बना दिया जाएगा। मंत्री पद के झुनझुने से कंसाना के समर्थक संतुष्ट नहीं हैं।
शर्मा का इस्तीफ़ा
पिछड़े वर्ग से आने वाले कंसाना के कट्टर समर्थक मदन शर्मा ने सुमावली विधानसभा ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष पद से गुरुवार को इस्तीफ़ा दे दिया। समर्थक चाहते हैं की कंसाना भी कांग्रेस को राम-राम कह दें।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस को ग्वालियर-चंबल संभाग में शानदार कामयाबी मिली है। पार्टी ने इन क्षेत्रों की कुल 34 में से 26 सीटें जीती हैं। मुरैना और इससे लगे श्योपुर ज़िले में कुल आठ सीटें हैं। इन आठ सीटों में से सात कांग्रेस ने जीती हैं। दोनों ही ज़िलों में सात सीटें जीतने के बाद किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया है, कंसाना समर्थक और कांग्रेसी इस बात से भी दुखी हैं। संकेत मिल रहे हैं कि एक-दो दिनों में कुछ और पदाधिकारी और कई कार्यकर्ता इस्तीफ़ा दे सकते हैं। कमलनाथ जब मंत्रिमंडल के गठन को लेकर मशक्क़त कर रहे थे तब कई विधायक और उनके समर्थक हर तरह से दबाव बना रहे थे।
क्या करें पहली बार बने विधायक बने नेता?
मंत्री पद को लेकर लालायित तो बसपा के दो और सपा के एक विधायक भी थे। पहली बार के विधायकों को मंत्री ना बनाए जाने के कमलनाथ के एलान ने उम्मीद लगाए बैठे विधायकों की हसरतों पर पानी फेर दिया था। विधानसभा का सत्र जनवरी के पहले सप्ताह में आरंभ हो रहा है। भाजपा के विधायकों की संख्या 109 है।
संख्या बल के हिसाब से बीजेपी सदन में हर दिन सत्तारूढ़ दल की परीक्षा के लिए कमर कसे बैठी हुई है। कहीं भी तनिक सी भी चूक कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकती है। ऐसे में विधायकों का असंतोष किसी भी सूरत में कांग्रेस दल के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है।
कंसाना को बसपा से कांग्रेस में दिग्विजय सिंह लाए थे। ऐंदल सिंह कंसाना बसपा में हुआ करते थे। दिग्विजय सिंह अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में उन्हें कांग्रेस में लाए थे। दूसरे कार्यकाल में पार्टी से टिकट दिलाया था। जीतने के बाद अपने काबीना में कंसाना को दिग्विजय सिंह ने स्थान भी दिया था। उधर धार ज़िले की बदनावर सीट से विधायक राजवर्धन सिंह के इस्तीफ़ा दिए जाने की पार्टी को धमकी की भी सूचना थी, हालांकि पार्टी के रणनीतिकार इसे ग़लत बताते रहे। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के असंतोष को मध्यप्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता ने मीडिया का गढ़ा ग़ुस्सा क़रार दिया।
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