मध्य प्रदेश का मैहर शहर।
यह प्रसिद्ध मां शारदा मंदिर और महान सरोद वादक बाबा अलाउद्दीन खान द्वारा स्थापित
किये गये मैहर घराने के लिए जाना जाता है। लेकिन अब यह एक दूसरे कारण से चर्चा में
है। चर्चा का कारण राज्य सरकार में मंत्री उषा ठाकुर के मंत्रालय द्वारा गया वह
निर्देश है जिसमें उन्होंने शारदा मंदिर के मुस्लिम कर्मचारियों को निकालने के
संबंध में दिया है।
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राज्य धार्मिक न्यास और
धर्मस्व मंत्रालय की उप सचिव पुष्पा कलेश द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में मंदिर
समिति से 17 जनवरी को जारी निर्देश
का पालन करने और एक रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इस पत्र में साफ तौर पर कहा
गया है कि मुस्लिम कर्मचारी अब मंदिर की प्रबंधन समिति में काम नहीं कर सकते हैं।
मंदिर के जिन कर्मचारियों को निकाले जाने को लेकर पत्र जारी किया गया है, वे 1988 से वहां काम कर रहे थे।
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कर्मचारियों को निकालने
के अलावा मैहर शहर की सीमा में मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश
भी जारी किया गया है। इसकी शिकायत विश्व हिंदू परिषद यानी विहिप और बजरंग दल के
कार्यकर्ताओं ने जनवरी में संस्कृति, धार्मिक न्यास और बंदोबस्ती मंत्री उषा सिंह ठाकुर से की थी। मंत्री उषा ठाकुर
ने कर्मचारियों को निकालने का आदेश, राज्य सरकार के पहले से बने नियमों के विरुद्ध जारी किया है। राज्य सरकार के
नियमों के अनुसार राज्य में धार्मिक आधार पर किसी भी कर्मचारी को नौकरी से नहीं
हटाया जा सकता है।
इस मसले पर एनडीटीवी ने
जिलाधिकारी अनुराग वर्मा से भी बात की। जिलाधिकारी मंदिर प्रबंधन समिति का भी
प्रमुख होता है। उन्होंने मीडिया से कहा है कि नियमों के अनुसार कार्रवाई की
जाएगी। इस आदेश पर मंत्री की टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।
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मैहर के मंदिर से दो
मुस्लिम कर्मचारियों को हटाये जाने से मैहर के सांस्कृतिक विरासत पर गहरा असर पड़ेगा।
मैहर बाबा अलाउद्दीन खान का घर था, जो महान संगीतकार
और मैहर घराने के संस्थापक थे। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ सबसे बड़े
नाम दिए हैं। उनके प्रसिद्ध शिष्यों में पंडित रविशंकर, पंडित निखिल बनर्जी और उनकी बेटी अन्नपूर्णा देवी और बेटे
उस्ताद अली अकबर खान हैं।
किवदंती है कि बाबा खान
मैहर के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर ही सरोद बजाया करत थे। बाबा अलाउद्दीन खान की
विरासत केवल संगीत में योगदान तक ही सीमित नहीं है। बीती सदी में एक महामारी के
बाद अनाथ हो गये कई बच्चों को गोद लेकर उन्होंने मैहर बैंड की स्थापना की थी जो आज
पांचवीं पीढ़ी में होकर भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।
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