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पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के मुस्लिम पहचान ‘फार्मूले’ पर बवाल..!

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में नाम लिखने पर रोक लगाई है। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अभी अंतिम निर्णय आना है। लेकिन फैसला आने के पहले मुस्लिमों की ‘पहचान’ के लिए बीजेपी की और से पेश ‘नये फार्मूले’ पर रार छिड़ गई है। सावन मास आरंभ होने के पहले उत्तर प्रदेश में कावड़ यात्रा मार्ग पर सभी दुकानदारों और प्रतिष्ठानों के मालिकों को निर्देशित किया गया था कि सभी व्यावसायी अपनी दुकान-प्रतिष्ठानों के आगे अपना तथा दुकान/प्रतिष्ठान में काम करने वालों का नाम लिखें।
सबसे पहले यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के प्रशासन ने एक प्रशासनिक आदेश इस बारे में जारी किया था। सावन मास में 4 जुलाई से 6 अगस्त तक कांवड़ यात्रा निकलने के कार्यक्रम के बाद आये इस आदेश से हंगामा मच गया था। यूपी के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ ने बाद में प्रशासनिक आदेश को पूरे राज्य में लागू करने संबंधी फरमान जारी कर दिया था। यूपी के बाद उत्तराखंड की सरकार ने भी कांवड़ यात्रा रूट पर दुकान एवं प्रतिष्ठानों के नाम को लिखना अनिवार्य किया था।
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यूपी और उत्तराखंड की नकल मध्य प्रदेश में भी हुई थी। एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन में म्युनिसिपल कार्पोरेशन ने निगम परिषद द्वारा पारित एक पुराने आदेश का हवाला देकर नाम पट्टिका संबंधी आर्डर जारी कर दिया था। इस आर्डर में उज्जैन नगर निगम सीमा में दुकानों/प्रतिष्ठानों पर नाम लिखना अनिवार्य किया गया था।
भाजपा शासित तीनों राज्यों में एक के बाद एक जारी फरमान से हंगामा बढ़ गया था। देश भर में प्रतिक्रियाएं हुईं थीं। यूपी में पुलिस और प्रशासन टीमों की अगुवाई में आनन-फानन में नाम लिखवाने की कार्रवाई आरंभ हुई थी। आलम यह रहा था रेड़ी-ठेलों पर भी नाम चस्पा कराये गये थे। पान-चाय की दुकानें, पंचर पकाने वालों की गुमटियों या खुले आसमान के नीचे बैठने वालों की पहचान भी लिखकर जाहिर की गई थी।
यूपी प्रशासन का कहना था, ‘कांवड़िये शिद्धत से धर्म का निर्वहन करते हैं। दुकान की सही पहचान नहीं होने की वजह से अनेक बार विवाद के हालात बनते थे। उपासना और उसकी पवित्रता खतरे में पड़ती थी। सावन मास की पवित्रता-शुद्धता और इसके खंडित होने की वजह से पैदा होने वाले विवादों को टालना, नाम पट्टिका अनिवार्यता का मकसद बताया गया था।
तमाम बवाल, देश और दुनिया भर में यूपी-उत्तराखंड सरकारों एवं उज्जैन नगर निगम प्रशासन के फैसले को लेकर जमकर सवाल उठे थे। योगी और पुष्कर सिंह धामी सरकार अपने निर्णयों पर अड़ी रही थी। उज्जैन नगर निगम ने कदम पीछे खींच लिए थे। आर्डर वापस ले लिया था।
बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को नाम लिखने की अनिवार्यता पर रोक लगा दी थी। अंतरिम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीनों राज्यों को नोटिस इश्यू किए। इस मामले में पहले 26 जुलाई की तारीख लगी और राज्य द्वारा मांगें गए समय के बाद 29 जुलाई नई तारीख लगी। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है। फाइनल फैसला आना है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा थाः सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर दिए गए अपने अंतरिम आदेश में मुख्य रूप से स्पष्ट किया था, ‘दुकानदार-होटल मालिक डिस्प्ले के जरिये यह स्पष्ट कर दें कि उनकी दुकान या होटल पर परोसा जा रहा खाना/खाद्य पदार्थ वेज है अथवा नानवेज। इसके आगे कुछ और करने (नाम लिखने/काम करने वालों के नाम लिखने) की जरूरत नहीं है।’

‘हिन्दू अपनी दुकान-संस्थानों पर चस्पा कर दें नाम’

इन तमाम स्थितियों और सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी विचाराधीन होने के दरमियान मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने पूरे मामले को नये सिरे से हवा दे दी है। प्रज्ञा सिंह ने एक एक्स पर कहा है, ‘मेरा हर हिंदू से आह्वान है कि अपनी दुकान, अपने प्रतिष्ठान पर अपना नाम अवश्य लिखें। अब जो लिखेगा, वही हिंदू और जो नाम न लिखे, वह हिंदू नहीं। नाम लिखने से आपको कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि देश आपका ही है। फिर सब समझदार हैं।’
प्रज्ञा सिंह ठाकुर के इस बयान को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर तंज के साथ-साथ मसले को तूल देने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। प्रज्ञा सिंह के एक्स के पर सत्तारूढ़ दल की और से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है, लेकिन विरोधी दलों ने भाजपा को अपने निशाने पर ले लिया है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव बरोलिया ने रविवार को कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि प्रज्ञा ठाकुर अपने आपको सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानती हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ चुका है कि देश नफरत को बर्दाश्त नहीं करेगा। लेकिन, नफरत फैलाने वाली प्रज्ञा ठाकुर अपने शब्दों से फिर से वैमनस्यता और नफरत का माहौल बनाना चाहती हैं।’ बरोलिया ने यह भी कहा है, ‘सरकार और कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए कि इस तरह की जो सोच रखता है, उसके खिलाफ क्या एक्शन होना चाहिए। यह देश चुनाव में नफरत को नकार चुका है। प्रज्ञा ठाकुर की नफरत फैलाने वाली बातों को जनता स्वीकार नहीं करेगी।’
उधर समाजवादी पार्टी के मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा, ‘भाजपा की वरिष्ठ नेता प्रज्ञा सिंह ठाकुर देश को हमेशा बांटने का काम करती आई हैं। पांच साल भोपाल की सांसद रहीं, बताएं कि इन्होंने जनता और मध्यप्रदेश के विकास के लिए क्या किया, कोई भी एक अच्छा काम बताएं।’
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गोडसे समर्थक प्रज्ञा

मालेगांव बम ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोट से हराया था। इस जीत के बाद एक बार पुनः वे देश भर के राजनीतिक हलकों एवं मीडिया की सुर्खियां बनीं थीं। जीत के कुछ समय बाद प्रज्ञा सिंह ने नाथूराम गोडसे की पैरवी की थी, इसके बाद भी जमकर बवाल हुआ था। न केवल भाजपा ने प्रज्ञा सिंह की राय से स्वयं को अलग किया था, बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे की पैरवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी का इजहार किया था। पीएम ने कहा था, ‘वे कभी भी साध्वी प्रज्ञा सिंह को मॉफ नहीं करेंगे। पूरे पांच साल पीएम ने प्रज्ञा सिंह से दूरियां बनाकर रखीं थीं। लोकसभा चुनाव 2024 में प्रज्ञा की टिकट भाजपा ने काट दी थी। 
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क़मर वहीद नक़वी
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