मध्य प्रदेश में शिवरात्रि के अवसर पर सनावद क्षेत्र के छपरा गांव में दलितों के एक शिव मंदिर में पूजा करने को लेकर झड़प हो गई। दलितों का आरोप है कि उन्हें पूजा करने से पहले मंदिर में घुसने से रोक दिया गया। इस बीच हुई झड़प में कम से कम 14 लोग घायल हो गए। ऐसा ही एक मामला कसरावद क्षेत्र में हुआ है जहाँ मंदिर में पूजा करने से कुछ लोगों के रोके जाने की ख़बर आई है।
एनडीटीवी ने पुलिस के हवाले से रिपोर्ट दी है कि खरगोन जिले में गाँव के दलित समुदाय ने आरोप लगाया है कि 'उच्च जाति' के कुछ लोगों ने उन्हें एक मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया। रिपोर्ट के अनुसार दलितों के मंदिर में पूजा करने को लेकर विवाद हुआ और फिर झड़प हो गई। इलाक़े में हिंसा भड़कने के बाद दोनों तरफ से पथराव हुआ। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विनोद दीक्षित ने कहा, 'दोनों ओर से भारी पथराव हुआ। दोनों पक्षों की ओर से शिकायत की गई है और कार्रवाई की जाएगी।'
दलित समुदाय से आने वाले प्रेमलाल नाम के शख्स ने प्राथमिकी दर्ज कराई है जिसमें आरोप लगाया गया है कि गुर्जर समुदाय के भैया लाल पटेल के नेतृत्व में एक समूह ने दलित लड़कियों को मंदिर के अंदर जाने से मना किया था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस ने 17 संदिग्धों और 25 अज्ञात अन्य लोगों के खिलाफ दंगा और अन्य आरोपों के लिए मामला दर्ज किया है। इनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की रक्षा से जुड़ी धाराएँ भी शामिल हैं।
रवींद्र राव मराठा की शिकायत पर दलित समुदाय के सदस्यों पर हथियारों से हमला करने के आरोप में प्रेमलाल और 33 अन्य के खिलाफ भी एक जवाबी मुकदमा दायर किया गया।
अन्य रिपोर्टों में पास में कसरावद क्षेत्र में भी एक ऐसी ही घटना उसी दिन हुई। दलित समुदाय के सदस्यों ने छोटे कसरावद गांव में एक शिव मंदिर में प्रार्थना करने से रोकने का आरोप लगाया है।
रिपोर्ट के अनुसार शिकायतकर्ता मंजू बाई ने दावा किया है कि महिलाओं द्वारा शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए उनकी जाति को लेकर दुर्व्यवहार किया गया और धक्का-मुक्की की गई। पुलिस ने कहा कि एक मामले में पांच लोगों के खिलाफ जातिगत भेदभाव कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं। पुलिस का कहना है कि छोटी कसरावद में महाशिवरात्रि के कारण मंदिर में भीड़ थी, जिसके कारण महिलाओं के बीच विवाद हुआ था।
दलितों को मंदिर में नहीं घुसने देने के मामले जब तब देश के अलग-अलग हिस्सों से आते रहे हैं। इस पक्षपात का दलित समुदाय अब खुलकर विरोध भी करने लगा है। हाल ही में तमिलनाडु में क़रीब 200 दलितों ने 'प्रतिबंध' को तोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश किया था। मंदिर में दलितों के प्रवेश को एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा गया। अनुसूचित जाति के एक समुदाय के लोगों को लगभग आठ दशकों तक उस मंदिर में प्रवेश से वंचित रखा गया था।
दलितों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न के भी अजीबोगरीब मामले आते रहे हैं। हाल के दिनों में चर्चित मामला राजस्थान का था। पिछले साल अगस्त में 9 साल के एक दलित छात्र को इसलिए पीटकर मार डाला गया था कि उसने उस मटके से पानी पी लिया था जो कथित तौर पर शिक्षक के लिए अलग रखा गया था। आरोपी शिक्षक को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
पिछले साल यूपी के रायबरेली में एक दलित उत्पीड़न का मामला आया था। तब वायरल हुए एक वीडियो में दिखा था कि कुछ युवक दलित युवक की पिटाई कर रहे थे।
वीडियो में दिखा था कि युवक हाथ जोड़े खड़ा था और एक युवक उसे बेल्ट जैसी किसी चीज से पिट रहा था। पीड़ित जमीन पर दोनों हाथों से कान पकड़े हुए बैठा था। आरोपी मोटरसाइकिल पर बैठा हुआ दिखा था। पीड़ित जमीन पर डर के मारे कांप रहा था। और फिर मोटरसाइकिल पर बैठा आरोपी पीड़ित को पैर चाटने के लिए मजबूर किया था।
इससे पहले बिहार में भी ऐसी ही एक ख़बर आई थी। राज्य के औरंगाबाद ज़िले में दिसंबर महीने में दबंग जाति के एक उम्मीदवार को मुखिया चुनाव में वोट नहीं देने की वजह से दो दलितों को कथित तौर पर कान पकड़ कर उठक-बैठक करने को मजबूर किया गया। इतना ही नहीं, उन्हें थूक चाटने को मजबूर किया गया।
पिछले साल जनवरी में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के एक गांव में एक दलित व्यक्ति की बारात पुलिस सुरक्षा में निकाली गई थी। दूल्हे ने अपने हाथ में संविधान की प्रति ले रखी थी। दूल्हे के परिवार ने कुछ प्रभावशाली लोगों पर बारात में बाधा डालने की आशंका जताई थी।
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