मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बीजेपी के कई कद्दावर नेताओं की नज़र है, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। बंगाल विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद अपने ‘पत्ते खेलने’ की तैयारी किये बैठे ऐसे नेताओं की उम्मीदों पर ममता बनर्जी के सिर चढ़कर बोले जादू ने पानी फेरकर रख दिया है।
मध्य प्रदेश में बीजेपी चौथी बार सत्ता में आयी है। पुराने कांग्रेसी दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस विधायकों द्वारा की गई बगावत के बाद मार्च 2020 में राज्य में बीजेपी की सरकार बनी है।
पिछले साल जोड़तोड़ से कांग्रेस की सरकार गिरा देने और अपनी सरकार बनाने के खेल के बीच मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं होने तक इस कुर्सी पर आँखें गड़ाए बैठे अनेक नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक मुख्यमंत्री बनने के लिए तमाम प्रयास किए थे।
आलाकमान ने भी काफ़ी माथापच्ची की थी लेकिन अंत में शिवराज सिंह चौहान का नाम सामने आया। शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री तो बना दिये गये, लेकिन मुख्यमंत्री पद की पिछली तीन पारियों की तरह ‘आज़ादी’ उन्हें नहीं दी गई।
बहरहाल, चौथी बार सत्ता पाने के बाद से कोरोना की पहली और बाद में दूसरी लहर पर शिवराज की ‘नैया’ हिचकोले खा रही है।
राजनीतिक गलियारों में यह सुगबुगाहट तो काफ़ी वक़्त से है कि मध्य प्रदेश में मौजूदा नेतृत्व इस कार्यकाल को पूरा नहीं कर पायेगा। पार्टी नया चेहरा मध्य प्रदेश में देगी।
बंगाल चुनाव के नतीजों ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की चाह रखने वालों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। बंगाल में बीजेपी 200 पार की आस लगाए बैठी थी। नतीजे उलट रहे।
ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने तमाम चुनावी भविष्यवाणियों को धता-बताते हुए बीजेपी को दो अंकों को पार नहीं होने दिया। उधर तृणमूल कांग्रेस 200 पार निकल गई।
ममता और उनकी पार्टी की धमाकेदार वापसी पर मध्य प्रदेश के सबसे ज़्यादा अचंभित कोई नेता हैं तो वे कैलाश विजयवर्गीय हैं। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में गहरी पैठ और सूबे के अन्य क्षेत्रों में भी पकड़ रखने वाले विजयवर्गीय बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के पार्टी के प्रभारी भी थे।
बंगाल विधानसभा चुनाव में उन्होंने जमकर पसीना बहाया। पिछले चुनाव के बाद से ही इंदौर के बाद उन्होंने अपना ‘दूसरा घर’ कोलकाता को बना रखा था। पूरे पाँच साल वे बंगाल में सक्रिय रहे। पूरी जमावट करते रहे।
विजयवर्गीय की उम्मीदों पर चुनाव नतीजों ने पानी फेर दिया। विजयवर्गीय द्वारा खड़े किये या कराये गये वे चेहरे भी खेत रहे जिनके जीतने की 100 प्रतिशत उम्मीद विजयवर्गीय के साथ ही पार्टी के आला नेताओं को भी थी।
ऐसा माना जाता रहा कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह दरबार के प्रिय पात्रों में शुमार विजयवर्गीय बंगाल जीतने पर ‘पारितोषिक’ का प्रस्ताव मिलने पर मोदी-शाह से मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पद मांगेंगे। लेकिन ‘ऐसा अवसर (पारितोषिक मिलने/मांगने का मौका) बना ही नहीं!’
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर नज़र रखने वालों में नरोत्तम मिश्रा का नाम भी ऊपरी पायदान पर है। शिवराज कैबिनेट में नंबर टू मिश्रा को भी बंगाल चुनाव में काफ़ी सीटों की ज़िम्मेदारी दी गई थी। वे बंगाल में डेरा डाले हुए थे। लगातार बयानबाज़ी कर रहे थे।
वे भी मानकर चल रहे थे बंगाल में ममता जायेंगी और बीजेपी आएगी। बीजेपी आयी तो मध्य प्रदेश में ‘अवसर’ उनके लिये भी बनेंगे! मगर ऐसा हो नहीं पाया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कृपापात्रों में शुमार किये जाने वाले मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की ‘महत्वाकांक्षाएँ’ भी कम नहीं हैं। वे स्वयं और उनके क़रीबी भी शर्मा में मुख्यमंत्री पद के ‘सारे गुण’ देखते हैं। शर्मा ने भी बंगाल में ख़ूब पसीना बहाया था।
‘साइलेंट वर्कर’ फिर हुए कामयाब
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का दावेदार नरेंद्र सिंह तोमर को भी माना जाता है। वे मोदी सरकार में काबीना मंत्री हैं। सरकार के साथ संगठन द्वारा समय-समय पर दी जाने वाली ज़िम्मेदारियों का निर्वहन भी वे बखूबी निभाते हैं।
पार्टी का ‘साइलेंट वर्कर’ कहे जाने वाले तोमर के पास असम का प्रभार था। असम में बीजेपी ने शानदार जीत अर्जित की।
पिछले काफ़ी वक़्त से मध्य प्रदेश की सत्ता में नेतृत्व परिवर्तन से जुड़ी ख़बरों के बाद जो कयासबाजी होती है उसमें मुख्यमंत्री पद के लिए एक अन्य नाम मोदी सरकार के मंत्री और मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग के नेता प्रहलाद पटेल का भी ख़ूब आता है।
तमाम कयासबाजियाँ अपनी जगह हैं, फ़िलहाल तो बंगाल चुनाव की हार से खुद केन्द्रीय नेतृत्व भी जबरदस्त सदमे में है। कोरोना ने भी ज़्यादातर सूबों और केन्द्र की सरकार को हिला रखा है।
कोरोना के साथ बंगाल चुनाव नतीजों के बाद केन्द्र में जो राजनीतिक हालात हैं, उसे देखते हुए मध्य प्रदेश सहित अन्य बीजेपी शासित राज्यों में बहुत जल्दी किसी भी तरह की राजनीतिक उठापटक के आसार टल गये लगते हैं।
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