मध्य प्रदेश में कांग्रेसियों के बीच छिड़ी आपसी रार और तकरार पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने तीख़ी नाराजगी जताई है। उन्होंने सूबे के लीडरानों को दो टूक चेतावनी दी है कि अपनी ही सरकार को अस्थिर और बदनाम करने वाली बयानबाज़ी से बाज़ आयें। कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कह दिया है, ‘किसी को कोई शिकायत है तो अपनी बात पार्टी फोरम पर करें।’
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, सोनिया गाँधी के निर्देश मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी को मिल गये हैं। बता दें कि मध्य प्रदेश में कांग्रेसियों के बीच सप्ताह भर से तीख़ी रार छिड़ी हुई है। नेता एक-दूसरे पर खुलकर कीचड़ उछाल रहे हैं। कमलनाथ कैबिनेट के सदस्य भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। विधायकों की ओर से भी अपनी ही सरकार और उसके मंत्रियों पर खुलकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जा रहे हैं।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के एक ख़त के बाद कमलनाथ सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार ने कुछ दिनों पहले खुलकर उनके ख़िलाफ़ बयानबाज़ी की थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया कैंप से आने वाले सिंघार ने दिग्विजय सिंह पर प्रदेश में शराब माफिया और रेत का अवैध उत्खनन करने वालों को खुला संरक्षण देने तक का आरोप मढ़ा था और तबादले-पोस्टिंग को लेकर भी दिग्विजय सिंह को कठघरे में खड़ा कर दिया था।
राज्यसभा के सदस्य की हैसियत से दिग्विजय सिंह ने मंत्रियों से की गई अपनी अनुशंसाओं पर क्या कार्रवाई हुई, यह जानने के लिए मुलाक़ात का समय मांगा था और सभी मंत्रियों को बाक़ायदा पत्र लिखा था। दिग्विजय के इसी पत्र के बाद से सिंघार भड़के हुए हैं। सिंघार ने दिग्विजय के ख़त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भी खत लिखा था और दिग्विजय सिंह पर कई आरोप लगाये थे। एक आरोप यह था कि दिग्विजय सिंह सुपर चीफ़ मिनिस्टर बनने और दिखने की कोशिश में लगे हुए हैं।
दिग्विजय और उमंग सिंघार विवाद के अलावा महाराष्ट्र के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया अपना राग अलाप रहे हैं। वह भी कमलनाथ सरकार की कार्यप्रणाली पर आये दिन संकेतों में सवाल उठा रहे हैं। कर्जमाफी पर तो उन्होंने आंदोलन तक करने की बात कही है।
अवैध उत्खनन को लेकर भी नाथ सरकार पर सिंधिया ने हमला बोला है। दिग्विजय सिंह के विरूद्ध सिंघार की आपत्तियों को सिंधिया ने सही ठहराया है। सिंधिया के अन्य समर्थक मंत्रियों के सुर भी बागी बने हुए हैं।
उधर, दिग्विजय सिंह कैम्प से जुड़े विधायक और मंत्री अपनी ताक़त दिखाने में जुटे हुए हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर हर कैम्प अपने हिसाब से पत्ते चल रहा है। मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी अभी कमलनाथ ही हैं। उन्होंने दिग्विजय और सिंघार विवाद पर सिंघार को तलब किया था और दो टूक नसीहत दी थी। इसके बाद सिंघार ने प्रेस कांफ्रेंस कर ‘युद्ध विराम’ की बात कही थी। लेकिन इसके कुछ घंटों बाद गुरूवार रात को ही उन्होंने आग को भड़काने वाला एक ट्वीट कर डाला था।
अजय सिंह ने दिखाई ताक़त
भोपाल समेत ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया समर्थक ज्योतिरादित्य को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर सौंपने संबंधी पोस्टर अभियान चलाये हुए हैं। पिछले सप्ताह पीसीसी अध्यक्ष पद की दावेदारी को लेकर मप्र के घाघ नेता रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र और मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने अपनी ताक़त का मुजाहिरा किया था। भोपाल स्थित अर्जुन सिंह के सरकारी निवास सी- 19 पर 30 के लगभग समर्थक विधायक जुटे थे। तब चाय पार्टी की आड़ में अजय सिंह ने अपनी ताक़त दिखायी थी।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के बीच चल रही सिर-फुट्टव्वल से प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया भी ख़ासे चिंतित और विचलित हैं। हालांकि कोई भी उनकी सुनने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने परसों भोपाल में एक बयान जारी करते हुए हरेक कांग्रेसी को अपनी जद में रहने को कहा था। बावरिया ने कहा था, ‘किसी को भी कोई भी शिकायत हो तो मुझे आकर बताये अथवा पार्टी आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाये।’ बावरिया की नसीहत बेअसर रही क्योंकि विवाद और बयानबाज़ी का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
सिंधिया पर ‘बरसे’ थे दिग्विजय सिंह
उमंग सिंघार के आरोपों पर चुप्पी साधे दिग्विजय सिंह शुक्रवार को मीडिया के समक्ष उपस्थित हुए थे। सिंघार की बयानबाज़ी पर उन्होंने दो टूक कहा था, ‘इस मामले में कांग्रेस आलाकमान सोनिया गाँधी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ फ़ैसला लेंगे।’ सिंह ने कहा, ‘बीजेपी और संघ पर उनके द्वारा किए जा रहे हमले कुछ ‘लोगों’ को रास नहीं आ रहे हैं।’
दिग्विजय सिंह ने कहा था, ‘मैंने न तो पहले एक ख़ास विचारधारा से कभी समझौता किया और ना ही आगे करूंगा। आरएसएस और बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी थी, है और आगे भी जारी रहेगी।’
सिंधिया का नाम लिये बग़ैर उन्होंने संकेतों में कहा, ‘कोई कितना ही बड़ा शख्स क्यों ना हो, पार्टी आलाकमान को किसी भी तरह की अनुशासनहीनता क़तई बर्दाश्त नहीं करना चाहिये। अनुशासनहीनता करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई जरूरी है।’
एसपी-बीएसपी, निर्दलीय दिखा रहे आंखें
मध्य प्रदेश कांग्रेस में मचे घमासान के बाद सरकार का समर्थन कर रहे निर्दलीय विधायकों के अलावा बीएसपी और एसपी के विधायक भी कमलनाथ को आंखें दिखा रहे हैं। एसपी के विधायक राजेश शुक्ला ने तो साफ़ कह दिया है कि उनकी अनुशंसाओं पर सरकार ने अमल नहीं किया तो वह कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लेंगे। इसके अलावा निर्दलीय विधायक सुरेंन्द्र सिंह उर्फ शेरा भैया मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं।
प्रदेश को नोच रहे कांग्रेसी: शिवराज
मध्य प्रदेश के कांग्रेसियों द्वारा एक-दूसरे पर खुलकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सूबे के कांग्रेसियों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा था, ‘कांग्रेसी मध्य प्रदेश को भूखे चील-कौवों ती तरह नोचने पर तुले हुए हैं। इनके कृत्यों से सूबे का विकास ठप हो गया है। मशीनरी में तबादलों के सिवाय कोई काम नहीं हो रहा है। तबादलों में सरकार और कांग्रेसी मिलकर जमकर चांदी काट रहे हैं।’
फायदा उठाने में जुटी बीजेपी
मध्य प्रदेश कांग्रेस की आपसी लड़ाई का फायदा उठाने में पूरी बीजेपी जुट गई है। मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने तो कमलनाथ सरकार का समर्थन कर रहे चार निर्दलीय, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक को कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का न्यौता दे डाला है। उन्होंने कहा, ‘वे (निर्दलीय और बीएसपी-एसपी विधायक) ‘साथ’ आ जायें, बीजेपी बेहतर सरकार चलाकर दिखायेगी। कमलनाथ सरकार ने प्रदेश को डुबो दिया है। बीजेपी ने पहले भी शानदार ढंग से 15 साल मध्य प्रदेश की सरकार चलाई है।’
हालाँकि गोपाल भार्गव की टिप्पणी से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पल्ला झाड़ लिया है। दोनों ने ही संकेतों में भार्गव के बयान से नाइत्तेफाकी जता दी है। उधर बीजेपी आलाकमान द्वारा भार्गव को इस बयान के लिए फटकार लगाये जाने की भी सुगबुगाहट है।
115 विधायकों की ज़रूरत
कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 116 विधायकों की जरूरत होती है। एक सीट झाबुआ अभी रिक्त है। इस हिसाब से 229 सदस्यों वाले सदन में अभी 115 विधायक होने पर सरकार बनाई जा सकती है। अभी कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। चार निर्दलियों, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक का सरकार को समर्थन हासिल है। इस हिसाब से कांग्रेस सरकार में विधायकों का आंकड़ा 121 है। भाजपा के पास तकनीकी तौर पर तो 108 विधायक हैं। चूंकि इनमें से दो ने विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस का साथ दिया था, लिहाजा ‘सही-सही’ संख्या अभी 106 ही मानी जायेगी।
यदि निर्दलीय और बीएसपी-एसपी विधायक बीजेपी के साथ आ भी जायें तो भी कमलनाथ सरकार को कोई ख़तरा नहीं होगा।
बीजेपी सरकार बनाने में तभी कामयाब हो पायेगी जब निर्दलीय और बीएसपी-एसपी के साथ-साथ कांग्रेस के चार-पांच विधायक बीजेपी के खेमे में आयेंगे। कांग्रेस विधायकों द्वारा बार-बार अपनी ही सरकार को गीदड़-भभकियां देने और आंतरिक कलहबाजी आये दिन बीजेपी की ‘उम्मीदों’ को जगा देती है।
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