मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनावों के टिकट वितरण में बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के ‘सर्वे’ को दरकिनार कर दिया है। लंबी माथापच्ची के बाद मंगलवार देर शाम कुल 16 नगर निगमों में से 14 के लिए मेयर पद के घोषित टिकटों ने बीजेपी नेताओं को भी चौंका दिया है। आधे टिकट आरएसएस पृष्ठभूमि वाले ऐसे चेहरों को दिये गये हैं जो अनजान हैं अथवा बहुत ही मामूली तौर पर पहचाने जाने वाले हैं।
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में अनेक दावेदार थे। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्य के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय, लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष और कई बार इंदौर की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन सहित तमाम नेताओं की पसंद को दरकिनार करते हुए पुष्यमित्र भार्गव को टिकट दिया गया है। एमफिल (लॉ) शिक्षित भार्गव का नाम दूर-दूर तक चर्चाओं में नहीं था। उन्हें एडिशनल एडवोकेट जनरल पद से इस्तीफा दिलाकर चुनाव मैदान में उतारा गया है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहना और राष्ट्रीय स्वयं संघ में सक्रियता उनके टिकट की सीढ़ी बनी।
इंदौर के अलावा जबलपुर में डॉ. जितेन्द्र जामदार, सतना में योगेश ताम्रकार, रीवा में प्रबोध व्यास, छिंदवाड़ा में अनंत कुमार धुर्वे, कटनी में ज्योति दीक्षित और मुरैना में मीना जाटव के टिकट भी आरएसएस की तगड़ी पृष्ठभूमि के चलते फाइनल हुए।
इनमें से कुछ के नाम चर्चाओं में आये थे, लेकिन ऐसा माना जा रहा था सक्रिय राजनीति में नहीं होने और ज्यादा जाना-पहचाना चेहरा नहीं होने के चलते बीजेपी रिस्क नहीं लेगी। लेकिन आलाकमान ने कयासों को पलटते हुए दांव खेल दिया।
बता दें, टिकटों को लेकर मध्य प्रदेश बीजेपी पिछले चार-पांच दिनों से जमकर माथापच्ची कर रही थी। कई बार सूची बनी। नाम जुड़े और बदले गए। मुख्यमंत्री को दिल्ली जाना पड़ा। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा देश के गृहमंत्री अमित शाह से चर्चा हुई। भोपाल में मंगलवार को राज्य इकाई फिर बैठी। गुणा-भाग हुए। शाम को सूची आयी तो कई नामों को लेकर पार्टी के आम कार्यकर्ता से लेकर स्थापित नेता तक अवाक रह गए।
आरएसएस की शाखाओं में शुमार होने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सरस्वती शिशु मंदिर और जन अभियान परिषद में सक्रिय रहने/काम करने वालों को मेयर पद के टिकटों से नवाज दिया गया।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री चौहान और प्रदेश अध्यक्ष शर्मा का सर्वे कुछ और कह रहा था। जीतने की प्रबल संभावनाओं वाले तमाम चेहरों की सूची सर्वे के माध्यम से टिकटों की अनुशंसा के लिए फाइनल हुई थी। आलाकमान ने सर्वे को ‘एक कोने में पटककर’ अपनी पसंद के अनेक चेहरे पेश करते हुए शानदार जीत दिलाने का लक्ष्य राज्य के मुख्यमंत्री और संगठन को दे दिया है।
बीजेपी ने मेयर और अन्य टिकटों के लिए क्राइटेरिया बनाया। इस क्राइटेरिया में विधायक, 60 साल के ऊपर के उम्मीदवारों और नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट नहीं देना प्रमुख मापदंड थे। इन मापदंडों का सख्ती से पालन किया गया।
भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बाबूलाल गौर की विधायक बहू (भोपाल की मेयर रही हैं) कृष्णा गौर और इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय के दाहिने हाथ एवं तीसरी बार के विधायक रमेश मेंदोला (2018 का विधानसभा चुनाव रिकार्ड मतों से जीते थे) मजबूत दावेदार होते हुए टिकट की रेस से बाहर हो गए। भोपाल सीट ओबीसी वर्ग की महिला प्रत्याशी के लिए रिजर्व है। ओबीसी वर्ग से आने वालीं कृष्णा गौर ने मेयर का चुनाव लड़ने जा रहीं कांग्रेस की मौजूदा उम्मीदवार एवं पूर्व महापौर विभा पटेल को जोरदार पटखनी दी थी। बावजूद इसके उन्हें टिकट नहीं मिला।
मामी की उम्र बन गई रोड़ा
क्राइटेरिया घोषित होने के पहले तक ग्वालियर में माया सिंह मेयर के टिकट की सबसे मजबूत दावेदार थीं। सिंधिया राजघराने से नाता रखने वाली माया सिंह (स्व. माधवराव सिंधिया की मामी हैं) शिवराज सरकार में मंत्री रही हैं। बेहतरीन प्रशासक मानी जाती हैं। बेदाग छवि है। मगर उम्र का बंधन उनकी तयशुदा मानी जा रही टिकट में रोड़ा बन गया। आयु 71 साल होने की वजह से वह टिकट की दौड़ से बाहर हो गईं। हालांकि ग्वालियर का टिकट अभी फाइनल नहीं हुआ है।
ग्वालियर का टिकट केन्द्रीय मंत्रीद्वय ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर की पसंद-नापसंद के बीच उलझा हुआ है।
‘रिस्क केलकुलेटिव है’
टिकट वितरण में आरएसएस के अनजान चेहरों पर दांव को लेकर मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘बीजेपी आलाकमान का दांव केलकुलेटिव है।’
वे कहते हैं, ‘नये और अनजान चेहरों से नुकसान से सीधे इनकार नहीं कर सकते, लेकिन बीजेपी का संगठन बेहद मजबूत है। भितरघात आसान नहीं होता। कितनी भी नाराजगी हो, काम सभी को करने के लिए बाध्य किया जाता है।’
गुप्ता कहते हैं, ‘अगले साल विधानसभा का चुनाव है। यदि कोई भितरघात करेगा तो भविष्य खतरे में पड़ेगा। वैसे भी प्रदेश नेतृत्व से लेकर आलाकमान तक इस मोर्चे पर बेहद सख्त है। उपचुनाव में पार्टी की मंशानुसार सक्रिय नहीं रहने और भितरघात की शिकायत पर जयंत मलैया और डॉक्टर गौरीशंकर शैजवार सरीखे बड़े नेताओं को बीजेपी ने कारण बताओ नोटिस थमाकर संदेश दे दिया था। बीजेपी ने बता दिया था वरिष्ठ और पुराने नेता पार्टी से ऊपर नहीं हैं। नुकसान को पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी।’
दिनेश गुप्ता कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिखराव और पिछले अनेक चुनावों में हार-दर-हार भी आरएसएस पृष्ठभूमि वाले कम पहचाने जाने वाले चेहरों को मेयर पद के लिए आगे बढ़ाना वजह है।’
उन्होंने कहा कि आरएसएस चेहरों पर दांव वाला प्रयोग सफल हो गया तो यह बार-बार और अन्य राज्यों में भी बीजेपी की ओर से देखने को मिलेगा।
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