एक समय सोनिया और राहुल गांधी के बेहद करीबी नेताओं में शुमार रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी ने कहीं ‘ठग’ तो नहीं लिया? मध्य प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह सवाल तेजी से ‘गूंज’ रहा है। राज्य की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव के बाद सिंधिया का राजनीतिक भविष्य मुक्कमल तौर पर तय हो जायेगा। मगर सिंधिया समर्थकों की चिताएं, अपने राजनीतिक आका और स्वयं के भविष्य को लेकर अभी से बढ़ी हुई हैं।
इसी साल मार्च महीने में सिंधिया ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराने के एवज में बीजेपी ने सिंधिया को राज्यसभा की सीट से नवाज़ा है।
कमलनाथ सरकार में मंत्री और विधायक पद ठुकरा देने वाले सिंधिया के दर्जन भर समर्थकों को शिवराज सरकार में मंत्री पद मिले हैं। कांग्रेस से दगाबाज़ी कर बीजेपी की सरकार बनवाने वाले कांग्रेस के सभी पूर्व विधायकों को बीजेपी ने उपचुनाव में टिकट भी दिए हैं।
पसीना बहा रहे सिंधिया
उपचुनाव में अपने समर्थकों को जिताने के लिए सिंधिया जमकर पसीना बहा रहे हैं। कुल 28 सीटों में 25 वे सीटें हैं जो कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफों से रिक्त हुईं हैं। तीन सीटें वे हैं जो विधायकों के असामयिक निधन से खाली हुई हैं। विधानसभा के 2018 के चुनाव नतीजों में इन 28 सीटों में 27 कांग्रेस के खाते में आयीं थीं, जबकि शाजापुर जिले की आगर विधानसभा सीट बीजेपी ने जीती थी।
सिंधिया समर्थक मान रहे हैं कि उपचुनाव में जितनी ज्यादा सीटें उनके समर्थक उम्मीदवार जीतेंगे ‘महाराज’ की ‘पूछ-परख’ बीजेपी में उतनी ही बढ़ेगी।
सिंधिया समर्थकों की सोच अपनी जगह है। लेकिन उपचुनाव में अब तक बीजेपी खेमे से जो 'रंग' नज़र आये हैं, उसमें सिंधिया के राजनीतिक भविष्य से जुड़े संकेत बहुत अच्छे नहीं माने जा सकते।
जनता पूछ रही सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जुगलजोड़ी एवं मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी उपचुनाव में गद्दार कार्ड को जमकर खेल रहे हैं। पूरा उपचुनाव ‘टिकाऊ बनाम बिकाऊ’ के आसपास सिमटा हुआ है। सिंधिया और उनके समर्थक बीजेपी प्रत्याशियों को अपने-अपने क्षेत्रों में कांग्रेस से गद्दारी को लेकर जमकर कैफ़ियत देनी पड़ रही है। कांग्रेस को क्यों छोड़ा? और बीजेपी में क्यों आये? इन उम्मीदवारों की ऊर्जा ऐसे सवालों के जवाब देने में खर्च हो रही है।
उधर, मध्य प्रदेश बीजेपी के ‘रंग-ढंग’ ने सिंधिया समर्थकों की बेचैनी बढ़ा रखी है। बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची जारी हुई तो सिंधिया दसवें नंबर पर रखे गये। सिंधिया के ऊपर बीजेपी के कई ऐसे नेता थे, जिनका कद सिंधिया के मुकाबले में काफी नीचा है।
मध्य प्रदेश बीजेपी के उपचुनाव में उतारे गये रथों से सिंधिया का चेहरा ‘नदारद’ रहना भी खुद सिंधिया और उनके समर्थकों को रास नहीं आया। सिंधिया कांग्रेस के पोस्टर ब्वाॅय हुआ करते थे। स्टार प्रचारकों में भी कांग्रेस में उनका नाम ऊपरी पायदान पर होता था।
बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में कई पायदान नीचे खिसकना और बैनर-पोस्टरों से ‘गायब’ हो जाने को ‘महाराज’ के समर्थक पचा नहीं पा रहे हैं।
यहां बता दें कि उपचुनाव वाली कुल 28 सीटों में 16 ग्वालियर-चंबल संभाग से हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में ये सारी सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। जीत की बड़ी वजह सिंधिया ही रहे थे। कमलनाथ की सरकार भी सिंधिया फैक्टर की वजह से बनी थी।
मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष वी.डी.शर्मा से सवाल हुआ, बीजेपी के बैनर-पोस्टरों से सिंधिया का चेहरा क्यों नदारद है, तो उनका जवाब दिलचस्प रहा, शर्मा ने कहा, ‘हमारी पार्टी के पोस्टर-बैनर में किसको लेना है और किसको नहीं? ये सब योजना और नियमों के हिसाब से तय होता है। किसी नेता का चेहरा पोस्टर पर नहीं होना उसका अनादर करना कतई नहीं होता है।’
प्रदेश कांग्रेस ने ली चुटकी
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भले ही लाख सफाई दें, मध्य प्रदेश कांग्रेस चुटकियां लेते हुए कह रही है - ‘महाराज को बीजेपी उनकी हैसियत का अहसास कराने लगी है।’ मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता के.के. मिश्रा तो दावा ठोक रहे हैं, ‘उपचुनाव के नतीजों के बाद सिंधिया और उनके समर्थकों के हालात, ना खुदा मिला और ना बिसाले सनम वाले हो जायेंगे।’
‘सिंधिया को ढोना मजबूरी है’
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर का कहना है, ‘सिंधिया के बीजेपी में आने का लाभ पार्टी को कमलनाथ की सरकार गिरने और स्वयं की सरकार बनने तक ही सीमित है।’
उन्होंने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘अब तो सिंधिया बीजेपी की मजबूरी और बोझ ज्यादा हैं। उपचुनाव में सिंधिया की हैसियत मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट भर की है, या यह भी कह सकते हैं बीजेपी के मध्य प्रदेश में जीते हुए 28 सांसदों जैसी।’
गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘उपचुनाव में सिंधिया का चेहरा बीजेपी के लिए कोई बहुत बड़ा चमत्कार कर पायेगा, इसके आसार बिलकुल भी नज़र नहीं आ रहे हैं। बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबला अभी तो बराबरी का ही नज़र आ रहा है। बीजेपी का काम सात सीटों से भी चल जाने वाला है, जबकि कांग्रेस को अपने दम पर दोबारा सत्ता में लौटने के लिए सभी 28 सीटें जीतनी पड़ेंगी।’
सिंधिया के राजनीतिक भविष्य के प्रश्न पर गिरिजा शंकर का कहना है, ‘सिंधिया युवा हैं। उन्हें लंबी राजनीति करनी है। कांग्रेस से बीजेपी में आना उनके भविष्य के लिए बेहतर कदम है। उपचुनाव के बाद केन्द्रीय मंत्री का पद सिंधिया को मिल सकता है। बीजेपी भविष्य में संगठन में भी उनका उपयोग करती नजर आये तो आश्चर्य नहीं होगा।’ उन्होंने कहा कि सिंधिया को बीजेपी में जो भी तवज्जो मिलेगी उसमें कैडर को बहुत अधिक नजर अंदाज नहीं किया जायेगा।
निष्क्रिय हैं बीजेपी कार्यकर्ता
शिवराज सिंह सरकार में सिंधिया समर्थक मंत्रियों (गैर विधायक) की संख्या 14 है। इन सभी को टिकट मिला है। उपचुनाव में इनमें से आधा दर्जन की हालत बेहद खस्ता बनी हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज और सिंधिया के साथ बीजेपी का राज्य संगठन ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। मगर स्थानीय स्तर पर बीजेपी के जमे-जमाये पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं की बेरुखी बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बनी हुई है।
बीजेपी की खतरे में मानी जा रही सीटों में स्थानीय नेता और कार्यकर्ता की कथित उदासीनता ही ‘महाराज और शिवराज’ के साथ बीजेपी की भी हार्टबीट बुरी तरह बढ़ाये हुए है। उधर, कांग्रेस की पूरी उम्मीद भी बीजेपी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की ‘उदासीनता’ पर टिकी हुई है।
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