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मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और कर्मवीर के प्रधान संपादक डॉक्टर राकेश पाठक को दो अक्टूबर को बापू के सत्याग्रह स्थल साबरमती आश्रम में प्रार्थना करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। गुजरात पुलिस ने घंटों उन्हें हिरासत में रखा। राकेश पाठक ने कहा, ‘उन्हें हिरासत में क्यों रखा गया? इसकी ठोस वजह बार-बार पूछने पर भी गुजरात पुलिस नहीं बता पायी!’
यह ख़बर सबसे पहले सोशल मीडिया पर आई। इसकी जानकारी मिलने पर मध्य प्रदेश में उनके शुभ चिंतकों और पत्रकार मित्रों ने उन्हें फोन लगाये तो पाठक के दोनों ही फोन नो रिप्लॉय होते रहे। डॉक्टर पाठक ने दोपहर को अपनी फ़ेसबुक वॉल पर लिखा, ‘जरूरी सूचना - अहमदाबाद पुलिस मुझे सुबह साढ़े छह बजे होटल से उठाकर ले गई थी। दोपहर 12 बजे छोड़ा। अब साबरमती आश्रम से दोबारा थाने ले जा रहे हैं।’
इस पोस्ट के बाद दोपहर क़रीब दो बजे डॉक्टर पाठक ने फ़ेसबुक वॉल पर ‘अपडेट’ देते हुए लिखा, ‘अहमदाबाद पुलिस ने मुझे दो बार हिरासत में लेने के बाद अभी छोड़ दिया है। विस्तार से बाद में बताता हूँ।’
डॉक्टर राकेश पाठक ने पूरे घटनाक्रम को लेकर अहमदाबाद से ‘सत्य हिन्दी’ को बताया, वे भोपाल से अहमदाबाद एक अक्टूबर को पहुँचे थे। दो अक्टूबर को सुबह वे बापू के आश्रम जाने वाले थे। सत्याग्रह आश्रम के ठीक सामने ‘सिल्वर क्लाउड’ होटल में वब ठहरे हुए थे। डॉक्टर पाठक के अनुसार क़रीब साढ़े छह बजे होटल के कमरे का उनका दरवाजा खटखटाया गया तो वह समझे चाय आई होगी।
डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘मैंने दरवाजा खोला तो वेटर के पीछे खड़े पांच हट्टे-कट्टे लोग उनके कमरे में घुसे। मेरे दोनों सेलफोन अपने कब्जे में ले लिये। साथ चलने का आदेश दिया।’ पाठक ने कहा कि जब उन्होंने पूछा कि कौन हैं, तो उन्होंने स्वयं को अहमदाबाद पुलिस बताया। पाठक ने पूछा- वजह क्या है? कोई वारंट है? पुलिस वालों का जवाब था, थाने चलिये सब पता चल जायेगा।’
डॉक्टर पाठक ने स्वयं का परिचय दिया कि वह मध्य प्रदेश के अधिमान्य पत्रकार हैं, कई प्रमुख समाचार पत्रों के संपादक रह चुके हैं, वर्तमान में कर्मवीर पत्रिका के प्रधान संपादक हैं। टीम ने कहा कि हमें इस बात की जानकारी है। पाठक ने तैयार होने की अनुमति मांगी तो अनुमति मिल गई। वे नहा-धोकर तैयार हुए।’
डॉक्टर पाठक ने बताया, ‘नहाने के बाद जब मैंने खादी का कुर्ता-पायजामा और गमछा निकाला तो पुलिस वालों ने खादी के कपड़े नहीं पहनने दिये। निर्देश दिये कि ये कपड़े न पहनें, पैंट-शर्ट पहनकर ही साथ चलें।’
प्राइवेट नंबर की कार और टीम उन्हें राणीप थाना के ठीक सामने बनी पुलिस चौकी में ले गई। क़रीब चार घंटे यहां उन्हें बैठाकर रखा गया। पाठक ने कहा कि बार-बार पूछने पर पुलिस ने उनको हिरासत में लेने की ठोस वजह नहीं बताई। उनके अनुसार पुलिस वाले यही दोहराते रहे कि उन्हें लेकर ‘ऊपर’ से कुछ इनपुट मिले हुए हैं, सूचना है कि वह सत्याग्रह करने वाले हैं।
छोड़े जाने के बाद पाठक जब होटल पहुँचकर खादी का कुर्ता-पायजामा पहन कर आश्रम जाने के लिये निकले तो पुलिस ने उन्हें फिर से हिरासत में ले लिया। दोबारा हिरासत में लिये जाने के दौरान मिले वक़्त में डॉक्टर पाठक ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर अहमदाबाद पुलिस द्वारा हिरासत में लिये जाने वाली बात को पोस्ट कर दिया।
डॉक्टर पाठक के अनुसार एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल में गुजरात को रिपोर्ट करने वाले पुराने पत्रकार मित्र ने आला अफसरों तक से संपर्क साधा, स्थितियां बताईं, इसके बाद उन्हें छोड़ा गया। डॉक्टर राकेश पाठक दोबारा हिरासत से छूटने के बाद सत्याग्रह आश्रम गये। प्रार्थना की। चरखा चलाया।
राजेश बादल ने विरोध जताते हुए कहा, ‘गांधी का देश, गांधी का प्रदेश, गांधी का आश्रम, गांधी जयंती, साबरमती आश्रम को प्रणाम करने गए वरिष्ठ पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड के सदस्य डॉक्टर पाठक को एक नहीं बल्कि दो बार पुलिस द्वारा हिरासत में लिया जाना, खादी के कपड़े तक ना पहनने देना - अचंभित करता है।’
डॉक्टर पाठक ने बताया कि उन्होंने एक साधारण पत्रकार और गांधीमार्ग के अति साधारण पथिक के तौर पर छह सितंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला ख़त लिखा था। इस ख़त को उन्होंने पीएमओ को मेल किया था।
अपने इस ख़त में डॉक्टर पाठक ने प्रधानमंत्री मोदी से साबरमती आश्रम को बचाने की अपील करते हुए लिखा था, ‘सत्याग्रह आश्रम गांधी की सादगी और सत्य का प्रतीक है। गुजरात की सरकार आश्रम का काया-कल्प करने जा रही है। लगभग 1246 करोड़ रुपये से संग्रहालय को मेमोरियल का रूप दिये जाने की तैयारी है। सत्याग्रह आश्रम गांधी जी की सादगी और शुचिता का प्रतीक है। उसे आधुनिक संग्रहालय जैसा रूप देना आश्रम की मूल आत्मा को नष्ट करने जैसा है। दुनिया का हर देश महापुरुषों की धरोहर को उनके मूल स्वरूप में ही सुरक्षित-संरक्षित रखने की ओर अग्रसर है। हमें भी बापू के सत्याग्रह आश्रम को मूल स्वरूप में ही सहेज कर रखना चाहिये।’
डॉक्टर पाठक ने पीएम को लिखे खुले ख़त के अंत में लिखा था, ‘मैं यह भी सूचित कर रहा हूँ कि आगामी दो अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन सत्याग्रह आश्रम को बचाने के लिये हम सब आवाज़ उठायेंगे। गांधीवादी तरीक़े से जिसे जैसा उचित लगेगा वैसा प्रतिरोध दर्ज करायेंगे।’
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