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मध्य प्रदेश: ‘लव जिहाद’ रोकने की ‘मुहिम’ को हाईकोर्ट से झटका!

मध्य प्रदेश सरकार की ‘लव जिहाद’ रोकने की मुहिम को तगड़ा झटका लगा है। एमपी हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 10 को प्रथम दृष्टया असंवैधानिक करार देते हुए इच्छा से अंतरजातीय विवाह करने वाले व्यस्क नागरिकों पर इस धारा के तहत मुक़दमा नहीं चलाने का आदेश दिया है।

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी लज्जाशंकर हरदेनिया, आजम खां और अन्य छह लोगों ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की अनेक धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाएँ दायर की हैं। अलग-अलग याचिकाओं को एक करते हुए हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है। हाईकोर्ट के जस्टिस सुजॉय पाल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की पीठ ने धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के समूह पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है, ‘यदि व्यस्क नागरिक अपनी मर्जी से विवाह करते हैं तो उनके खिलाफ मुक़दमा नहीं चलाया जायेगा और अधिनियम की धारा 10 के उल्लंघन के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की जायेगी।’ पीठ ने याचिकाओं को लेकर अपना अंतरिम फैसला सुरक्षित रखते हुए अगले तीन सप्ताह में प्रदेश की सरकार से जवाब मांगा है।

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हाईकोर्ट की पीठ ने की हैं ये टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट की पीठ ने लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2006) 5 एसीसी 475 और लक्ष्मीबाई चंद्रगी बी और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का ज़िक्र किया है। इसने कहा है, ‘विवाह, यौन अभिविन्यास और इन पहलुओं के संबंध में पसंद निजता के अधिकार के दायरे में हैं और इसका व्यक्ति की गरिमा के साथ सीधा संबंध है।’

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

याचिकाकर्ताओं ने समूचे अधिनियम को चुनौती दी है। अधिनियम की धारा 2 (ए), 2 (बी), 2 (सी), 2 (डी), 2 (ई), 2 (आई) 3 (एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण पर रोक), 4 (धर्म परिवर्तन करने से पहले इससे घोषणा) और 12 (साबित करने भर) को ख़त्म करने की प्रार्थना की है।

याचिककर्ताओं ने तर्क दिया है, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए अधिकारियों को बेलगाम और मनमाना अधिकार देता है। यह नागरिकों के धर्म का पालन करने और अपने जीवन साथी की जाति और धर्म के बावजूद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप भी करता है। 
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि यदि आक्षेपित अधिनियम को कायम रखने की अनुमति दी जाती है तो यह न केवल मूल्यवान मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा बल्कि समाज के सद्भाव को भंग भी करेगा।

याचिकाकर्ता ने किया स्वागत

याचिकाकर्ता लज्जाशंकर हरदेनिया ने हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को निर्देश देने और अधिनियम की धारा 10 के तहत किसी भी मुक़दमा नहीं चलाये जाने के निर्णय का स्वागत किया है।

हरदेनिया ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट 2021 में प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है।’ उन्होंने कहा, ‘व्यस्क नागरिक को अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है।’

उन्होंने कहा, ‘लव जिहाद के नाम अथवा आड़ में नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन किसी भी सूरत में सभ्य समाज को शोभा नहीं देता है।’

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क़ानून में क्या है प्रावधान

मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य कानून में बहला-फुसलाकर, धमकी देकर जबरदस्ती धर्मांतरण के आरोप सिद्ध हो जाने पर 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है। धर्मांतरण और धर्मांतरण के बाद होने वाले विवाह के 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को धर्मांतरण, विवाह करने एवं करवाने वाले दोनों पक्षों को लिखित में आवेदन देना भी अनिवार्य है।

बगैर आवेदन दिए धर्मांतरण करवाने का आरोप सिद्ध होने पर संबंधित धर्मगुरु, काज़ी, मौलवी अथवा पादरी को 5 साल के कारावास का प्रावधान अधिनियम में रखा गया है। सहयोग करने वाले को सज़ा का प्रावधान भी अधिनियम में है।

आरोपी को ही निर्दोष होने के सबूत देने, जबरन धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं के पंजीयन रद्द करने, पीड़ित महिला और पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण का हक हासिल करने के प्रावधान भी अधिनियम में किये गये हैं।

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संजीव श्रीवास्तव
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