महामारी कोरोना के बढ़ते संक्रमण के ख़तरों और लाॅकडाउन के बीच घरों में रहने और घर का बना खाना खाने से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के दावे भले ही हो रहे हैं, लेकिन अवसाद और धैर्य टूटने का सिलसिला भी ज़बरदस्त ढंग से बढ़ रहा है। सिर्फ राजधानी भोपाल में 22 मार्च (जनता कर्फ्यू) से 07 मई (लाॅकडाउन तीन की मध्य अवधि) के बीच कुल 46 दिनों में 43 आत्महत्याओं की घटनाएँ हुई हैं।
बता दें, मध्य प्रदेश आत्महत्याओं के मामले में देश में पाँचवें क्रम पर है। पिछले सालों के सुसाइट के आँकड़ों ने मध्य प्रदेश को इसी क्रम पर रखा है। भोपाल में पिछले डेढ़ महीनों के दरमियान हुई आत्महत्याओं की घटनाएँ बड़े उछाल की ओर इशारा कर रही हैं। जानकारों का कहना है, भोपाल के आँकड़े को आधार बनाया जाये तो ऐसा लगता है कि ख़ुदकुशी के मामलों में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
औसत आत्महत्या
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों के अनुसार, साल 2018 में मध्य प्रदेश में आत्महत्याओं की कुल 11 हज़ार 775 घटनाएँ हुई थीं। यानी, हर महीने औसतन 981 मामले। मध्य प्रदेश में कुल 52 ज़िले हैं। औसत निकाले जाने पर हर महीने एक ज़िले में 18-19 आत्महत्याओं का हिसाब होता है।
कोरोना संकट पैदा होने के बाद भोपाल में बीते डेढ़ महीने में 43 आत्महत्या मामले स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि लोगों के सब्र का बाँध टूटने का क्रम बहुत तेज़ हो गया है।
राजधानी में ख़ुदकुशी की जो वारदातें 22 मार्च से 7 मई के बीच हुई हैं, उनमें कुछ मामलों में कोरोना के भय से मौत को गले लगाने के संकेत भी मिले हैं।
कारण क्या है?
मोटे तौर पर भोपाल की आत्महत्याओं से जुड़े अधिकांश मामले घरेलू कलह, नशा प्रवृत्ति और क़र्ज़ का बोझ रहा है। कुछ मामलों में वजह नौकरी जाने चले जाने का भय भी रहा है।
मनोचिकित्सक डाॅक्टर सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है,
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‘लाॅकडाउन की वजह से एन्जाइटी और डिप्रेशन बढ़ रहा है। शहर में ऐसे मामलों में 10 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।’
लॉकडाउन से अवसाद
डाॅक्टर त्रिवेदी कहते हैं, ‘लाॅकडाउन रहेगा? नहीं रहेगा? कब खत्म होगा? आगे नौकरी और काम-धंधे का क्या होगा? कोरोना हो गया तो? ये और इस तरह के बहुतेरे सवालों को लेकर लोग बुरी तरह आशंकित हैं। पहले कई लोग जो लोग सीमा पर थे, कोरोना संक्रमण काल में डिप्रेशन का शिकार हो गये हैं।’
डाॅक्टर त्रिवेदी ने कहा, ‘लाॅकडाउन चरित्र और व्यक्तित्व की परीक्षा है। घर में रहने से तक़रार बढ़ गई है। होना यह था कि इस समय में अपने रिश्ते को अच्छा बनाते, मगर रिश्तें बिगड़ रहे हैं।’
डाॅक्टर त्रिवेदी के अनुसार ओसीडी (ऑबसेसिव कंपलसिव डिसऑर्डर) भी मौजूदा हालातों का एक अहम कारण है। ओसीडी एक बीमारी है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति बार-बार हाथ धोता है। हाथों को धोने के निर्देश की वजह से भी बीमारी बढ़ रही है। इससे बचाव के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है। काउंसिलिंग करना होगी।
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