क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का 1857 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हुए स्वतंत्रता संग्राम से कोई संबंध हो सकता है। शायद, आपका जवाब नहीं में होगा, क्योंकि जिन दो घटनाओं में 153 साल का अंतर हो, उनकी आपस में कोई तुलना नहीं हो सकती या वे किसी भी तरह एक-दूसरे से संबंधित नहीं हो सकतीं। लेकिन सिंधिया के पार्टी छोड़ने के फ़ैसले को कांग्रेस के कई नेताओं ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा है। पार्टी नेताओं ने यह भी कहा है कि सिंधिया ने अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये विचारधारा को त्याग दिया।
कांग्रेस नेताओं ने सिंधिया पर हमला बोलते हुए उन्हें गद्दार बताया है और 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ हुए विद्रोह और उसमें सिंधिया राजघराने की कथित भूमिका का जिक्र किया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि गद्दारी सिंधिया राजघराने के खून में है और 1857 की क्रांति में इस राजघराने ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से गद्दारी की तथा कठिन समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से गद्दारी की है।
कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा है कि 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजया राजे सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी। कांग्रेस नेताओं ने ट्विटर पर लिखा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ने का फ़ैसला ज़रा भी चौंकाने वाला नहीं है क्योंकि उनका तो इतिहास ही ऐसा रहा है, चाहे वह 1857 हो या 1967 या फिर 2020।
इस तरह के कुछ संदेशों को कांग्रेस के हज़ारों-लाखों कार्यकर्ताओं ने ट्विटर और फ़ेसबुक पर कॉपी-पेस्ट किया है और ज्योतिरादित्य और सिंधिया राजघराने को गद्दार ठहराने की पूरी कोशिश की है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सिंधिया के फ़ैसले को लेकर कहा कि सिंधिया ने लोगों के विश्वास और विचारधारा, दोनों को धोखा दिया है। गहलोत ने कहा कि सिंधिया जैसे लोग ताक़त के बिना नहीं रह सकते हैं और ऐसे लोग जितनी जल्दी पार्टी छोड़ दें, उतना ही बेहतर होगा। लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी सिंधिया को निशाने पर लिया और कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिये विचारधारा कोई मायने नहीं रखती है। अधीर ने कहा, ‘हमने उन्हें पूरा सम्मान दिया था लेकिन लालच लोगों को कहां से कहां ले जाता है। जिस पार्टी ने तुम्हें इतना कुछ दिया है, तुम उससे बेईमानी कर रहे हो।’
सिंधिया को पार्टी से निकाले जाने को लेकर अधीर ने कहा कि पार्टी के ख़िलाफ़ जाकर अगर आप गद्दारी करेंगे तो पार्टी चुपचाप बैठे नहीं रह सकती और पार्टी का सिंधिया को बाहर करने का फ़ैसला सही है।
दूसरी ओर कुछ नेताओं ने सिंधिया के जाने को पार्टी के लिये झटका बताया। हरियाणा में कांग्रेस के विधायक कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि पार्टी आलाकमान को सिंधिया को रोकने के लिये क़दम उठाने चाहिए थे। बिश्नोई ने कहा कि उनके अलावा कांग्रेस के कई और नेता ऐसे हैं जो ख़ुद को अलग-थलग और असंतुष्ट महसूस कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री जीतू पटवारी ने भी 1857 की घटना और सिंधिया की दादी के कांग्रेस छोड़ने की बात कही। कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर गौरव पांधी ने कहा, ‘गद्दार हमेशा गद्दार ही होता है और विश्वासघात को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता।’
मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला बोलते हुए उन्हें जयचंद कहा। इसी तरह मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने सिंधिया को लेकर कहा कि गद्दार मां की कोख से, भगत सिंह पैदा नहीं होते। कांग्रेस की इस टिप्पणी पर शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया का बचाव करते हुए कहा, ‘कल तक वे कांग्रेस के महाराज थे और आज गद्दार हो गये।’
अहम बात यही है कि जो कांग्रेस नेता कल तक ज्योतिरादित्य सिंधिया को श्रीमंत, महाराज जैसे विशेषणों से पुकारते थे, उनके सामने अदब से झुकते थे, उनके कांग्रेस छोड़ते ही वे उन्हें ही नहीं बल्कि उनके पूरे राजघराने को गद्दार बताने लगे। जबकि कल तक सिंधिया को निशाने पर लेने वाली बीजेपी आज उनके बचाव में उतर आई है।
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