मध्य प्रदेश में गौ-संरक्षण के लिए एक विभाग या मंत्रालय नहीं, बल्कि एक पूरी कैबिनेट होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस फ़ैसले से चौंकिए नहीं। इस फ़ैसले से सवाल ज़रूर उठ सकते हैं कि गायों की चिंता इस हद तक क्यों? गौ-संरक्षण के लिए क्या केंद्र सरकार की योजनाएँ नाकाफ़ी हैं? इसके लिए मध्य प्रदेश में पूरी एक कैबिनेट क्यों बनाने की घोषणा की गई है। उस कैबिनेट में कई विभागों को शामिल किया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'गौ-कैबिनेट' बनाने के फ़ैसले की जानकारी दी है। उन्होंने कैबिनेट की बैठक भी तय की है। उन्होंने इसको लेकर ट्वीट किया है।
प्रदेश में गोधन संरक्षण व संवर्धन के लिए 'गौकैबिनेट' गठित करने का निर्णय लिया गया है।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) November 18, 2020
पशुपालन, वन, पंचायत व ग्रामीण विकास, राजस्व, गृह और किसान कल्याण विभाग गौ कैबिनेट में शामिल होंगे।
पहली बैठक 22 नवंबर को गोपाष्टमी पर दोपहर 12 बजे गौ अभ्यारण, आगर मालवा में आयोजित की जाएगी।
वैसे, गौ-संरक्षण के लिए जितने बड़े पैमाने पर तैयारी है उससे तो लगता है कि मध्य प्रदेश में गायों पर बहुत बड़ा ख़तरा है। वैसे, बीजेपी लगातार गौ-संरक्षण की बात करती रही है, लेकिन उस पर गौ-संरक्षण के नाम पर राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं। राज्य में ही विपक्षी दल कांग्रेस ही शिवराज सरकार पर गौ-संरक्षण के लिए कुछ नहीं किए जाने और वोट के लिए इसके इस्तेमाल का आरोप लगाती रही है।
राज्य में गाय के नाम पर वोट मिलता है या नहीं, यह तो राजनीतिक दलों की राजनीति से ही पता चलता है। जब बीजेपी सत्ता में है तो वह गौ-संरक्षण की बात कह रही है और जब इससे पहले कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता में थी तो वह भी गौ-संरक्षण की बात कहती रही थी। कमलनाथ सरकार ने तो प्रदेश में एक सौ स्मार्ट गोशालाएँ बनवाने की घोषणाएँ की थीं। ऐसी गोशालाएँ बन भी रही थीं और गायों की दुर्दशा की ख़बरें भी आ रही थीं।
कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में ही पिछले साल अक्टूबर 2019 में भिंड में छोटे-छोटे दो कमरों में बंद 17 गायें तड़प तड़प कर मर गई थीं। ये आवारा गायें थीं और इनसे फ़सलें बर्बाद होने से अज्ञात लोगों ने उन गायों को कमरों में बंद कर दिया था। तब विपक्ष में बैठी बीजेपी ने इसको मुद्दा बनाया था।
अब बीजेपी की शिवराज सरकार सत्ता में है तो वह गौ-संरक्षण की बात कर रही है।
जैसी मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार वैसी ही केंद्र की मोदी सरकार। केंद्र सरकार ने भी पिछले साल यानी 2019 के बजट में गायों के लिए कई घोषणाएँ की थीं। उसमें सबसे महत्वपूर्ण फ़ैसला गायों के लिए अलग से आयोग बनाने और कामधेनू योजना लाने का था। बजट भाषण में तब के कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था,
“
गौमाता के सम्मान में और गौमाता के लिए यह सरकार कभी पीछे नहीं हटेगी। जो ज़रूरत होगी, वह काम करेगी।
पीयूष गोयल, 2019 में कार्यकारी वित्त मंत्री,
वैसे, बीजेपी गायों के नाम पर किस तरह की राजनीति करती है यह प्रधानमंत्री के बयान से भी साफ़ होता है। 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने मथुरा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा था, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ओम और गाय सुनते ही कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से देश 16वीं सदी में लौट जाएगा।'
हालाँकि, गौ-संरक्षण पर दो बड़े कारणों से जोर दिया जाता है। एक तो गौ-हत्या के कारण और दूसरा बिना दूध देने वाली गायों को सड़कों पर छोड़े जाने को लेकर। गौ-हत्या को रोकने के लिए बीजेपी अक्सर मुद्दा बनाती रहती है। दूसरे संगठनों से जुड़े लोग भी गौ-हत्या को लेकर स्वयंभू पहरेदार की भूमिका निभाने लगते हैं और इस बीच कई जगहों पर गाय ले जाने वालों को तस्कर कहकर लिंचिंग यानी पीट-पीट कर मार देने की घटनाएँ भी हो जाती हैं।
दूसरी बड़ी समस्या है आवारा पशुओं की। इसको लेकर सरकार गौशालाएँ खोलने के दावे करती रही हैं। लेकिन गौशालाएँ खोले जाने के बाद भी समस्या बनी हुई है। देश भर में सड़कों पर आवारा पशुओं की समस्या आम बात है और कई बार उनकी वजह से हादसे भी हो जाते हैं। इसमें गायों की भी जानें जाती हैं। कई गौशालाओं के बारे में भी अब तक कई ऐसी रिपोर्टें आ गई हैं कि उसमें भी धाँधली होती है। गौशालाओं में भी दूध देने वाली गायों पर ध्यान दिया जाता है और जो दूध नहीं देती हैं उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर गायों की हालत सुधर नहीं रही है।
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