उत्तर प्रदेश में वही हो गया है जिसका भारतीय जनता पार्टी को एक अरसे से डर था। उसके पैरोकार दावा कर रहे थे कि वे अखिलेश और मायावती को मिलने ही नहीं देंगे। उनका लक्ष्य बिहार में गठबंधन तोड़ देना और उत्तर प्रदेश में होने नहीं देना था। वे एक लक्ष्य वेध चुके थे, और दूसरा सीबीआई की मदद से वेधना चाहते थे। ज़ाहिर है, मायावती और अखिलेश की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वे इस दूसरे म़कसद में नाकाम हो चुके हैं। अब उनकी पार्टी को ग़ैर-भाजपा वोटों की 44 से 50 फ़ीसदी वोटों के बीच की विराट गोलबंदी का मु़काबला करना होगा। क्या भाजपा इस चुनौती का सामना कर पाएगी? इस प्रश्न का उत्तर पाने से पहले हमें यह देखना होगा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में 44 प्रतिशत वोट और तीन सौ से ज़्यादा सीटें पाने के लिए भाजपा ने कौन सी रणनीति अख़्तियार की थी। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि 2017 का चुनाव-परिणाम कमोबेश 2014 के चुनाव-परिणाम जैसा ही था।