कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। वक़्त बदल जाता है। पात्र बदल जाते हैं। घटनाएं वहीं रहती हैं। भारतीय राजनीति का चक्र भी घूमते-घूमते 2004 के लोकसभा चुनाव जैसा परिदृश्य फिर से दिखा रहा है। तब बीजेपी के दिग्गज नेता अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने गठबंधन की राजनीति की शुरुआत की थी। तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि सिर्फ़ पाँच साल के राजनीतिक अनुभव वाली सोनिया पचास साल के राजनीतिक अनुभव वाले वाजपेयी को सत्ता से उखाड़ फेकेंगी। लेकिन ऐसा हुआ और दुनिया ने देखा कि सोनिया गाँधी ने ऐसे-ऐसे नेताओं को साथ लेकर गठबंधन बनाया जो कभी विदेशी मूल के मुद्दे पर उनके ख़िलाफ़ थे।
सोनिया के नक्शे क़दम चल कर राहुल हो सकते हैं कामयाब
- चुनाव 2019
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- 18 Jan, 2019
देश की मौजूदा राजनीतिक स्थितियाँ 2004 की सियासी हालात से मिलती जुलती है। उस समय सोनिया ने जैसा किया था, राहुल को वैसा ही करना होगा।

सोनिया की तरह ही है चुनौती
आज कांग्रेस की कमान राहुल गाँधी के हाथों में है। उनकी अगुआई में कांग्रेस पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रही है। 2014 में सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस की अगुआई वाला यूपीए भी तितर-बितर हो चुका है। राहुल गाँधी के सामने नरेंद्र मोदी जैसे शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी को सत्ता से उखाड़ने की चुनौती है, जो 13 साल तक लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद प्रधानमंत्री के तौर पर पाँच साल का अपना पहला कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं। यानी राहुल के मुक़ाबले मोदी के पास लम्बा अनुभव है, उनकी लोकप्रियता पहले से कुछ छीजी तो है, लेकिन अब भी वह ख़ासे लोकप्रिय माने जाते हैं, 'भक्तों' की एक बड़ी सेना उनके पास है, ऐसे में राहुल के सामने चुनौती काफ़ी कठिन है। लेकिन अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी माँ सोनिया के नक़्शे क़दम पर चलते हैं तो न शायद सिर्फ़ चुनाव से पहले एक मज़बूत गठबंधन बना सकते हैं बल्कि मोदी के सामने कड़ी चुनौती भी पेश कर सकते हैं। यहां नज़र डालेंगे कि 2004 में कैसे सोनिया गाँधी ने कांग्रेस को 8 साल बाद दुबारा सत्ता में लाकर खड़ा कर दिया था। क्या राहुल वह कहानी दोहरा पायेंगे?