लालू यादव के बड़े लाल तेज़प्रताप यादव अभी काफी फ़ॉर्म में नज़र आ रहे हैं। पत्नी से तलाक़ की अर्ज़ी कोर्ट में देकर बृंदावन में महीनों प्रवास के बाद पटना लौटे तेजप्रताप यादव की ‘राजनीतिक’ सक्रियता के पीछे का राज़ क्या है? इसको समझने के लिए राजद के प्रथम परिवार का हल्का पोस्टमार्टम ज़रूरी है।
तेज़प्रताप यादव अपनी माता राबड़ी देबी के काफ़ी क़रीब माने जाते रहे हैं, जबकि तेजस्वी यादव के सिर पर उनके पिता लालू यादव का आशीर्वाद रहा है। लालू प्रसाद ने अपने इच्छा के अनुरूप तेजस्वी को अपना अघोषित उत्तराधिकारी बना दिया है। शुरूआती दौर में राबड़ी देबी की रज़ामंदी नहीं थी। लेकिन नीतीश कुमार के पल्टी मारने और लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी की हाथ में पार्टी की बागडोर देना ज़रूरी हो गया था। माँ के स्नेह और प्यार की पंख लिए तेजप्रताप यादव को बचपन से ही आसमान में उड़ने की आदत है। लिहाज़ा, उन्होनें पिता के अघोषित निर्णय को दिल से कभी स्वीकार नहीं किया।
उड़ने का शौक
कुल तीन में से एक मामा की बात पर विश्वास करें तो तेजप्रताप को बचपन से ही जहाज़ के साथ खेलने की आदत थी। छात्र जीवन में मित्रों के साथ घूमना-फिरना और सुबह-शाम नियमित रूप से भगवान कृष्ण की पूजा-पाठ करना इनकी दैनिन्दनी रही है।
जुगाड़ की उड़ान
वे पायलट बनकर आकाश में हवाई जहाज़ उड़ाने का स्वप्न देखत रहते थे। सपने को पूरा करने की नीयत से तेज़प्रताप ने जून 2010 में बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड से इंटरमीडिएट पास करने के बाद पटना के सरकारी फ्लाइंग इंस्टीटयूट में दाख़िला लिया। बाक़ायदा लिखित और मौखिक परीक्षा के बाद उनका चुनाव इस प्रतिष्ठित संस्थान में हुआ था। इन्टरव्यू पैनल में बिहार कैडर के एक सीनियर आइएएस अफ़सर के अलावे कई एक्सपर्ट भी शामिल थे। एक एक्सपर्ट ने तब पत्रकारों का बताया था ‘गज़ब का तेज़ मांइड तेज़प्रताप यादव के पास है। हमलोगों ने फ़ीजिक्स एवं मैथ्स के सवाल पूछे, जिसके जवाब उसने फटाक से दे दिए’।लालू यादव के सनातनी विरोधी आरोप लगाते हैं कि राजद अध्यक्ष ने नीतीश कुमार से फ़ोन पर पैरवी कर अपने बेटे तेज़ प्रताप यादव का दाख़िला फ़्लाइंग इंस्टीटयूट में कराया था। इसीलिए मात्र चार महीना पढ़ने के बाद तेज़प्रताप ने संस्थान को छोड़ दिया।
राजनीति का रस
लालू परिवार के क़रीबी बताते हैं कि भगवान कृष्ण के प्रति गहराता भक्ति भाव तेज़प्रताप यादव को संसारिक मोह माया से विरक्त कर रहा था। बेटे के स्वभाव में परिर्वतन और अध्यात्म के प्रति उसका झुकाव लालू यादव को मानसिक रूप से परेशान करने लगा। लालू यादव ने मन बनाया कि बेटे को बिज़नेस में लाया जाए, नहीं तो साधु बन जाएगा। राजद सांसद प्रेम गुप्ता की देख रेख में 2010 में लारा डिस्ट्रीब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड फ़र्म बनाकर इसका मैनेजिंग डाइरेक्टर तेजप्रताप यादव को बनाया गया था। लकिन उनका मन वहां नहीं रमा क्योंकि राजसी ठाट-बाट के आदि हो चुके तेजप्रताप यादव बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि कब उनका उम्र 25 साल का हो जाए ताकि वो जल्दी से जल्दी सांसद या विधायक बन जाएँ। 2015 विधान सभा चुनाव में वैशाली ज़िले के महुआ सीट से जीतकर मंत्री बन गए।
अजब शौक की ग़जब कहानी
तेज़प्रताप यादव अपने को कृष्ण का अवतार मानते हैं। महंगी कारों में सैर करना, बांसुरी बजाना, जलेबी छानना, सूजी का हलवा बनाना और ऊल-जुलूल बातें करना इनके शौक हैं।
आरएसएस से लोहा लेने के नाम पर तेज़प्रताप ने धर्म निरपेक्ष सेवक संघ का गठन किया है। एक समय में केन्द्र सरकार ने कुछ महीनो के लिए उन्हें 'वाई' कटेगरी की सुरक्षा सेवा प्रदान की थी। 2016 में पटना में हुए प्रकाश पर्व के दरम्यान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनका कुशलक्षेम कुछ इस प्रकार पुछा था 'कहो कृष्ण-कन्हैया क्या हाल-चाल हैं?'
बहरहाल, वर्चस्व और उत्तराधिकार को लेकर तेजप्रताप यादव अंदर से हमेशा खदकते रहे हैं।
तेज़प्रताप के मन में इस बात की टीस हमेशा रही कि वे परिवार में बड़े हैं, तो उन्हें ही पार्टी की बागडोर मिलनी चाहिए थी। कभी भी दिल से उन्होंने छोटे भाई तेजस्वी यादव को अपना नेता स्वीकार नहीं किया। लेकिन विद्रोह की इच्छा रखते हुए भी विद्रोह करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाए।
बड़े भाई की टीस
इसी बीच माता-पिता की खुशी के लिए तेज़प्रताप यादव ने शादी कर ली। किसी कारण पत्नी से तालमेल नहीं बैठा तो अदालत में तलाक़ की अर्ज़ी दे दी। तलाक़ के मुद्दे पर तेजप्रताप यादव को उम्मीद थी कि सारा परिवार उनका साथ देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिवार को अपनी पत्नी ऐश्वर्या राय के पक्ष में खड़ा पाकर तेज़प्रताप यादव भीतर से काफ़ी विचलित हैं।
अचानक राजनीति में तेज़प्रताप की सक्रियता उसी पृष्ठिभूमि में है। पूर्व मंत्री और तथाकथित कृष्णावतार अब अपने परिवार, ख़ासतौर से छोटे भाई से, बदला लेने के मूड में दिखते हैं। मंशा यह भी हो सकती है कि राजनीति में भाई के बराबर की लाईन खींचे। लेकिन इसमें उनको सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि उनकी हरकतों का कभी गंभीरता से लेना देना नहीं रहा है। सरकार की तरफ से नया बंगला भी मिल गया है, जहां से वो फ़ायरिंग करेंगे। सत्तारूढ़ पार्टी भी अपरोक्ष रूप से उनका सहयोग कर रही है। उसे लगता है कि दोनो भाईयों के बीच लड़ाई होगी तो स्वभाविक रूप से इसका फ़ायदा उन्हें मिलेगा।
लकिन लालू यादव के करोड़ो वोटर तेजस्वी यादव को अपना नेता मान चुके हैं। लालू यादव ने अपने चैनल से गांव गांव तक इस मैसेज को पहुंचा दिया है कि उनका असली उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ही हैं। ऐसे में न तो तेज़प्रताप यादव अपने मुहिम में और न लालू यादव के विरोधी अपने मक़सद में सफल होंगे।
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