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वक्फ क़ानून से बीजेपी के सहयोगी असमंजस में; आरजेडी बाजी मार लेगा?

बिहार की सियासी जमीन एक बार फिर गरमा रही है और इस बार वजह है वक्फ संशोधन क़ानून। जहाँ एक तरफ़ बीजेपी इसे पारदर्शिता का हथियार बता रही है, वहीं उसके सहयोगी दल जेडीयू और अन्य एनडीए घटक असमंजस के भंवर में फँसे दिख रहे हैं। नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठ रहे हैं और मुस्लिम वोटों की नाराजगी का डर सहयोगियों को परेशान कर रहा है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी इस मौक़े को सुनहरे हथियार की तरह भुनाने की तैयारी में है। पटना की गलियों से लेकर दिल्ली के संसद तक यह मुद्दा अब सिर्फ़ क़ानून का नहीं, बल्कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी का सवाल बन गया है। तो क्या वक्फ क़ानून बिहार में बीजेपी के गठबंधन को कमजोर करेगा, या आरजेडी इस सियासी दंगल में बाजी मार लेगा? आइए, इसकी पड़ताल करें।

वक्फ संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित करने में जेडीयू की भूमिका अहम रही। नीतीश कुमार की पार्टी ने बीजेपी के साथ क़दम मिलाते हुए इस बिल का समर्थन किया, लेकिन इसके बाद पार्टी के भीतर विरोध के स्वर तेज़ हो गए। जेडीयू के कई मुस्लिम नेताओं ने इस फ़ैसले पर नाराज़गी जताई और कुछ ने तो इस्तीफ़े तक दे दिए। पटना में हाल ही में जेडीयू के मुस्लिम नेताओं की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई थी। इसमें बिल का बचाव करने की कोशिश की गई, लेकिन पहले ही सवाल पर यह बैठक अचानक ख़त्म हो गई। यह घटना जेडीयू के भीतर असमंजस और एकजुटता की कमी को उजागर करती है।

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बिहार में मुस्लिम आबादी क़रीब 17-18% है और यह समुदाय कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि और मुस्लिम वोटों पर उनकी पकड़ हमेशा से जेडीयू की ताक़त रही है। लेकिन वक्फ बिल के समर्थन ने इस वोट बैंक में सेंध लगने का ख़तरा पैदा कर दिया है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि जेडीयू इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रहा है, लेकिन पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की कमी इसे मुश्किल बना रही है।

बीजेपी इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के ग़रीब और पिछड़े वर्गों के हित में बता रही है। पार्टी का दावा है कि यह क़ानून वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता लाएगा और संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकेगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे समावेशी क़ानून क़रार देते हुए कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं को सशक्त करेगा। लेकिन बिहार जैसे राज्य में, जहाँ धार्मिक और जातिगत समीकरण चुनावी नतीजों को तय करते हैं, बीजेपी के इस क़दम से सहयोगी दलों पर दबाव बढ़ गया है। 

जेडीयू के अलावा, एनडीए के अन्य सहयोगी जैसे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी इस मुद्दे पर खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं। यह असमंजस इस बात का संकेत है कि 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के भीतर रणनीति को लेकर एकरूपता की कमी है। 
बीजेपी जहाँ इस क़ानून को हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल कर सकती है, वहीं सहयोगी दलों को मुस्लिम वोटों के नुक़सान का डर सता रहा है।

आरजेडी की रणनीति क्या?

विपक्षी दल आरजेडी ने वक्फ क़ानून को लेकर एनडीए पर हमला बोलने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। तेजस्वी यादव ने साफ़ ऐलान किया है कि अगर उनकी सरकार बनी तो बिहार में यह क़ानून किसी भी क़ीमत पर लागू नहीं होगा। आरजेडी ने नीतीश कुमार पर तीखा कटाक्ष करते हुए उन्हें 'गिरगिट' तक करार दिया और उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाए। पटना में लगे पोस्टरों में नीतीश को आरएसएस का कार्यकर्ता बताकर इस मुद्दे को और हवा दी गई है। 

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आरजेडी की रणनीति साफ़ है। वह मुस्लिम वोटों को एकजुट कर एनडीए के ख़िलाफ़ माहौल बनाना चाहती है। तेजस्वी यादव ने इसे मुस्लिम विरोधी क़ानून क़रार देते हुए कहा कि यह बिहार की सामाजिक एकता को तोड़ने की साज़िश है। पार्टी इस मुद्दे को गाँव-गाँव तक ले जाने की तैयारी में है, ताकि चुनाव से पहले मतदाताओं के बीच नाराज़गी को भुनाया जा सके। साथ ही, आरजेडी कांग्रेस जैसे महागठबंधन के अन्य दलों के साथ मिलकर इसे संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमले के रूप में पेश कर रही है। 

बिहार में 2025 का विधानसभा चुनाव अब ज़्यादा दूर नहीं है। ऐसे में वक्फ क़ानून का मुद्दा एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए अहम साबित हो सकता है। जेडीयू के लिए यह संकट की स्थिति है, क्योंकि मुस्लिम वोटों का नुक़सान उनकी सीटों को प्रभावित कर सकता है। वहीं, बीजेपी इस मुद्दे को हिंदू वोटों को मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन सहयोगी दलों के असमंजस से गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं। 

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आरजेडी के लिए यह एक सुनहरा मौक़ा है। अगर वह मुस्लिम समुदाय को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहा कि वक्फ कानून उनके हितों के ख़िलाफ़ है, तो कई सीटों पर बाजी पलट सकती है। हालाँकि, तेजस्वी को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनकी रणनीति केवल ध्रुवीकरण तक सीमित न रहे, बल्कि विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को भी साथ लेकर चले। 

वक्फ संशोधन विधेयक ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। बीजेपी के सहयोगी दलों में असमंजस और आरजेडी की आक्रामक रणनीति से यह साफ़ है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में और गरमाएगा। नीतीश कुमार के लिए यह चुनौती है कि वह अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को कैसे बचाएँ और गठबंधन को कैसे एकजुट रखें। दूसरी ओर, आरजेडी इसे एनडीए के ख़िलाफ़ बड़ा हथियार बनाना चाहता है। अब देखना यह होगा कि क्या यह क़ानून बिहार में सियासी समीकरण बदल देगा, या फिर मतदाता इसे नजरअंदाज़ कर अन्य मुद्दों पर ध्यान देंगे।

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क़मर वहीद नक़वी
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