जैसे ही चुनावी झमाझम हिन्दी पट्टी में घुसा है, अचानक लड़ाई का स्वर बदलता लग रहा है। पहली चीज तो साफ़ दिखते वह प्रयास हैं जो चुनाव बाद सरकार बनाने के लिए बीच चुनाव में शुरू हो गए हैं। इसका मतलब यह है कि दोनों या तीनों पक्षों को अपने किए पुरुषार्थ से अलग नतीजे आते दिख रहे हैं। मोदी जी ममता और नवीन पटनायक पर ही नरम नहीं पड़े हैं, शरद पवार की बेटी के चुनाव क्षेत्र में भी जाने से वह बचे हैं। ममता उनको रसगुल्ला और कुर्ता भेजती हैं, इस सूचना ने सही असर किया हो या नहीं, पर नवीन बाबू को चक्रवात प्रभावित इलाक़े में विमान में साथ घुमाने, उनके काम की तारीफ़ करने और हज़ार करोड़ रुपये के अनुदान से ज़्यादा उनकी तसवीरों का खेल चला है।