हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और मध्य क्षेत्र के पाँच राज्यों में संपन्न हुए। देश का राजनीतिक मूड नापने का एक काफी बड़ा सैंपल रहा यह चुनाव। चुनाव नतीजों ने कुछ चीज़ें स्पष्ट कीं। बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक सुरक्षित है, पर 2014 के कई बीजेपी वोटरों ने बीजेपी के ख़िलाफ़ सबसे मज़बूत उपलब्ध विकल्प को चुना, चाहे वह कांग्रेस हो या क्षेत्रीय दल।
बीजेपी को जिताएगा हिंदू, बीजेपी को हराएगा हिंदू
- चुनाव 2019
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- 26 Dec, 2018

बीजेपी के प्रतीक केंद्रित हिंदुत्व को केवल एक गठजोड़ चुनौती दे सकता है और वह है हिंदू धर्म के दार्शनिक और हिंदू धर्म के मारजिनलाइज्ड की जोड़ी। क्योंकि इस जोड़ी के पास हिंदू धर्म के प्रामाणिक गतवैभव की विश्वस्त धरोहर भी है और चुनावी आँकड़ों में भारी पड़नेवाला संख्याबल भी।
एक स्थापित सत्य है कि ध्रुवीकरण किए बग़ैर किसी भी राजनीतिक दल का मूल वोट बैंक नहीं बनता। दूसरा सत्य यह भी है कि केवल ध्रुवीकरण की राजनीति सर्वमान्य लोकप्रिय भी नहीं हो पाती, क्योंकि ध्रुवीकरण की नीति के चलते किसी दल का मूल वोट बैंक तो निर्मित हो जाता है, पर अपने वोट बैंक को साथ रखने की तुष्टीकरण की आवश्यकता के चलते समाज के कई अन्य तबकों में वह दल अलोकप्रिय भी हो जाता है।
ऐसे दलों का मूल तर्क अक्सर यह होता है कि वह एक वर्ग-विशेष को उसके अपने प्रतिनिधि के माध्यम से सत्ता में भागीदारी दिला सकता है। इसीलिए अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियाँ एक ख़ास तबक़े में अत्यंत प्रभावशाली भी हैं, पर क्षेत्र-विशेष तक सीमित भी।
राष्ट्रीय पार्टियाँ परंपरागत वोट बैंक के घनीभूत होने के बाद अपने जनाधार को चौड़ा करने के लिए संकीर्ण तुष्टीकरण के ऊपर उठ कर कुछ व्यापक विषयों को भी प्रचारित करती हैं, ताकि बड़े भूभाग के अधिक लोग उसकी तरफ़ आकर्षित हों। अर्थात मूल वोट बैंक के साथ नया वोट बैंक जुड़े।
कांग्रेस ने 80 के दशक के उत्तरार्ध में शाहबानो और अयोध्या तालाखोल प्रकरण द्वारा अपने परंपरागत मुसलिम-दलित वोट बैंक में हिंदू वोट जोड़ने का प्रयत्न किया। बीजेपी ने 2014 में अपने परंपरागत शहरी हिंदू वोट बैंक में विकास के नारे के माध्यम से ग्रामीण, श्रमजीवी, युवाओं का वोट मिलाने का सफल प्रयास किया।
बीजेपी की दिक़्क़त कहाँ है?
परंतु 2014 से 2018 तक बीजेपी अपने इस नवीन वोटर को उसके विकास के लिए दिए गए वोट के अनुरूप डिलिवरी नहीं दे पाई। घोषणानुसार अच्छे दिनों में न तो किसान की कमाई बढ़ी, न श्रमिक की आय, न युवा को रोज़गार मिला। तो यही 2014 का नवीन वोटर वर्ग मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर-पूर्व में बीजेपी से रूठ कर उसके समक्ष सबसे मज़बूत प्रतिद्वंद्वी को वोट दे बैठा। ऊपर से नोटबंदी, जीएसटी आदि की मार भी भारी पड़ी।