अरविंद केजरीवाल के साथ दिक्क़त यह है कि वह अब तक इस सच को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि आम आदमी पार्टी के गठन के शुरुआती दिनों में जिस तरह राष्ट्रीय नेता की  संभावना उनमें देखी जा रही थी, वह अब वैसे नेता नहीं रहे। केजरीवाल के लिए इस सच को पचाना भी मुश्किल है कि जिस तरह फ़ीनिक्स पक्षी अपनी राख से उठ खड़ा होता है, वैसे ही राहुल गाँधी विपक्षी एकता की धुरी बन गए हैं। केजरीवाल के लिए इस सच को स्वीकार करना भी कठिन है कि कांग्रेस पुनर्जीवित हो गई है और अब लोग आम आदमी पार्टी को उसके विकल्प के रूप में नहीं  देखते हैं। दिल्ली और इसके आस पास के राज्यों में कांग्रेस और ‘आप’ के बीच अब तक गठबंध नहीं बन पाने की यही वजह है।