डॉक्टर राही मासूम रज़ा फिरकापरस्ती, जातिवाद, सामंतशाही और वर्गीय विभाजन के ख़िलाफ़ निरंतर चली प्रतिबद्ध कलम के एक अति महत्वपूर्ण युग का नाम है। इसी कलम ने मुसलिम अंतर्मन की गहरी तहें बेहद सूक्ष्मता से खोलता कालजयी उपन्यास 'आधा गाँव' लिखा तो दूरदर्शन की दशा-दिशा में क्रांतिकारी बदलाव का सबब बना धारावाहिक 'महाभारत'। 'आधा गाँव' यथार्थ की खुरदरी ज़मीन पर टिकी कृति है तो 'महाभारत' मनोजगत के अबूझ रहस्यों की शानदार प्रस्तुति।
श्रद्धांजलि: राही मासूम रज़ा क्यों कहते थे- मैं गंगा का बेटा हूँ
- श्रद्धांजलि
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- 15 Mar, 2020

डॉक्टर राही मासूम रज़ा (1 अगस्त 1927--15 मार्च 1992) की पुण्यतिथि पर विशेष।
'आधा गाँव' मुसलिम मन के रेशे-रेशे से गुज़रे बगैर संभव नहीं था तो 'महाभारत' हिंदू लोकाचार के एक-एक पहलू की पड़ताल के बगैर। 'हिंदुस्तानियत' का सच्चा पैरोकार ही यह कर सकता था। राही मासूम रज़ा यक़ीनन ख़ुद को गंगा-जमुनी तहजीब का बेटा मानते-समझते-कहते थे। उपमहाद्वीप की साहित्यिक-सांस्कृतिक शख्सियतों में उन सरीखा दूसरा कोई नहीं हुआ। वह अनूठे-अकेले थे।