कहते हैं, 'जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि।' यह बात हर कवि पर भले ही लागू ना हो लेकिन कैफ़ी आज़मी पर यह कहावत सोलह आने सच साबित होती है। 14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के मिज़वा गांव में कैफ़ी आज़मी का जन्म हुआ। वे बचपन में ही तब से बाग़ी होने लगे थे जब उन्होंने सामंतवादी आत्याचारों को अपने परिवेश में होते देखा।
वक़्त ने किया क्या हसीं सितम...
- श्रद्धांजलि
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- 14 Jan, 2019

पार्टी की ओर से हर महीने मिलने वाले 75 रूपए में गुज़र बसर बहुत मुश्किल थी, इसलिए कैफ़ी ने अख़बार में कालम लिखना शुरू कर दिया। किसी बड़ी ख़बर पर यह बग़ावती शायर व्यंग में टिप्पणी करता था। साथ ही वे इप्टा के लिए नाटक भी लिखने लगे।
फिर चाहे सामप्रदायिकता हो या किसान मज़दूरों और महिलाओं के हक़ की बात। रोमांटिक गीत हों, नाटक और व्यंग। कैफ़ी ने सब पर कलम चलाई। 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए पहले युद्ध के दौरान ऐसी घटनाएं भी हुईं, जो नजरअंदाज़ हो गईं। जैसे विभाजन के बाद कई ऐसे मुसलिम परिवार बँट गए, जिनके कुछ सदस्य आजादी से पहले भारतीय सेना में थे। आज़ादी के बाद एक ही परिवार के कुछ सैनिक भारत तो कुछ पाकिस्तानी सेना में तैनात थे। 65 की जंग में कई मोर्चों पर दोनो आमने सामने थे। दोनो के लिये बेहद संकट का कड़ा समय था। दोनो को अपनी अपनी वफ़ादारी साबित करनी थी। इस परिस्थिति को कौरव पांडव युद्ध के संदर्भ में श्री कृष्ण के संदेश से सहायता लेते हुए कैफी ने एक नज्म 'फ़र्ज़' लिखी –