डॉ. हेडगेवार के दो उत्तराधिकारी  संघ के अगले क़दम के बारे में मतभेद के धरातल पर थे, लेकिन उनमें परस्पर आदर का भाव कभी कम नहीं हुआ। वे अपने मत पर बने रहे। दूसरा कोई होता तो टकराव तय था। सरसंघचालक पद की  मर्यादा और गुरुजी के प्रति अपना सम्मान रखते हुए बालासाहब ने एक अलग रास्ता निकाला। वे संघ कार्य से विमुख नहीं हुए, निष्क्रिय हो गए। अपनी सक्रियता के लिए नया क्षेत्र चुना। वे प्रयोग उन्होंने अपनी सार्थकता के लिए किए। बालासाहब खेती बाड़ी में लग गए, इसको लेकर उनके नाम पर यह मज़ाक भी चलता रहा कि बालासाहब ‘कल्चर’ के बजाय ‘एग्रीकल्चर’ में लग गए हैं। दूसरा ‘नर केसरी’ के माध्यम से पत्रकारिता को नई दिशा दी।