‘साहित्य की प्रगति’ नामक निबंध में प्रेमचन्द समाज के विकास कर्म पर विचार करते हैं। उनका प्रस्थान बिंदु साहित्य है। साहित्य जीवन का जयगान है, उसका उत्सव है। लेकिन प्रेमचंद के अनुसार सबसे पहले ‘साहित्य जीवन की आलोचना है।...’ और इस आलोचना का एक उद्देश्य है।
प्रेमचंद 140 : 30वीं कड़ी : जीवन की आलोचना का मक़सद
- साहित्य
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- 14 Sep, 2020

आप उतने ही सभ्य, सुसंस्कृत माने जाते हैं जितने संपत्तिशाली हैं। संपत्ति आपके अवगुणों को ढँक लेती है। आपमें जो क्षमताएँ नहीं हैं, आप पैसे के बल पर हासिल कर सकते हैं। पैसा हो तो आप दुनिया भर एक कलावंतों की महफ़िल सजा कर गुणी और गुणग्राहक साबित होंगे, महँगी से महँगी कलाकृतियाँ अपनी दीवारों पर सजा कर कला मर्मज्ञ का ओहदा हासिल कर लेंगे।