सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार का मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत कोटा ख़त्म करने का फ़ैसला प्रथम दृष्टया पूरी तरह से गलत धारणा पर आधारित है। राज्य में चुनाव की घोषणा से ऐन पहले बोम्मई सरकार ने वह आरक्षण ख़त्म कर दिया था और इसको वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय को बांट दिया था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पर्दीवाला की पीठ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया है कि वह चार फीसदी आरक्षण रद्द करने के ख़िलाफ़ है।
सरकार के उस फ़ैसले से ओबीसी पूल में इन दोनों समुदायों का आरक्षण बढ़ जाएगा। वर्तमान में वोक्कालिगा को 4 फीसदी और लिंगायत को 5 फीसदी कोटा मिला हुआ है। लेकिन कैबिनेट के नए फैसले के बाद वोक्कालिगा को 6 फीसदी और लिंगायत को 7 फीसदी कोटा मिलेगा।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने राज्य सरकार के वोक्कालिगा और लिंगायत के लिए 2 प्रतिशत कोटा बढ़ाने के फैसले को 'त्रुटिपूर्ण' कहा है। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 18 अप्रैल तक के लिए टाल दी है।
बोम्मई सरकार के फ़ैसले में कहा गया था कि राज्य में दो सबसे प्रभावशाली समुदायों, लिंगायत और वोक्कालिगा को मुस्लिम ओबीसी कोटा आवंटित किया जाता है।
इसके अलावा 24 मार्च को कैबिनेट ने अनुसूचित जातियों के लिए कोटा के भीतर कोटा तय करने का फैसला किया था। ये फैसले चुनाव आयोग द्वारा राज्य में विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा के कुछ दिन पहले आए। कर्नाटक में 10 मई को मतदान होगा।
इसी वजह से सरकार के इस फ़ैसले को राजनीतिक फ़ैसले के तौर पर देखा गया। इस सरकारी फैसले ने कर्नाटक में आरक्षण प्रतिशत को भी बढ़ा दिया है, जो पहले से ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए 50 फीसदी की सीमा से अधिक है। यह लगभग 57 फीसदी है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही कह रखा है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए।
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने संवाददाताओं से कहा था -हमने कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। उन्होंने कहा था, एक कैबिनेट उप-समिति ने आरक्षण श्रेणियों में बदलाव की सिफारिश की और हमने इसे किया है। बोम्मई ने कहा कि पिछड़े वर्गों को दो सेट में पुनर्गठित किया गया है - 'अधिक पिछड़ा वर्ग और सबसे पिछड़ा वर्ग।'
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